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उत्तरा० के लिये चिन्तन] श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य प्रभवस्वामी कौन है ? उन्होंने श्रमणसंघ के अपने सभी साधुनों की पोर ध्यान दिया पर उनमें से एक भी साधु उन्हें अपनी अभिलाषा के अनुकूल नहीं जंचा । तत्पश्चात् उन्होंने अपने साधुसंघ से ध्यान हटा कर जब अन्य किसी योग्य व्यक्ति को खोजने के लिये श्रुतज्ञान का उपयोग लगाया, तो उन्होंने अपने ज्ञानबल से देखा कि राजगृह नगर में वत्स गोत्रीय ब्राह्मण सय्यंभव भट्ट, जो कि उन दिनों यज्ञानुष्ठान में निरत है, वह भगवान महावीर के धर्मसंघ के संचालन के भार को वहन करने में पूर्णरूपेण समर्थ हो सकता है।
दूसरे ही दिन गणनायक प्रभवस्वामी अपने साधुओं के साथ विहार करते हए राजगृह नगर पधारे। वहां पहुंचने पर उन्होंने अपने दो साधूनों को प्रादेश दिया- "श्रमणो! तुम दोनों सय्यंभव ब्राह्मण के यज्ञ में भिक्षार्थ जानो। वहां जब ब्राह्मण लोग तुम्हें भिक्षा देने से इन्कार कर दें तो तुम उच्च स्वर से निम्न श्लोक उन लोगों को सुना कर पुनः यहां लौट पाना -
"अहो कष्टमहो कष्टं, तत्वं विज्ञायते न हि ।' अर्थात - अहो! महान् दुःख, की बात है, बड़े शोक का विषय है कि सही तत्वं (परमार्थ) को नहीं समझा जा रहा है ।
इस प्रकार प्राचार्य के संकेतानुसार तत्काल दो साधु भिक्षार्थ राजगृह नगर को पोर प्रस्थित हुए और सय्यंभव भट्ट के विशाल यज्ञ-मंडप में पहुंच कर भिक्षार्थ खड़े हुए। वहां यज्ञ में भाग लेने हेतु उपस्थित विद्वान् ब्राह्मणों ने उन दोनों साधुनों को यज्ञान की भिक्षा देने का निषेध कर दिया।
इस पर प्रभवस्वामी की प्राज्ञानुसार मुनि-युगल ने उच्च स्वर में उपरिलिखित श्लोक का उच्चारण किया और वे अपने स्थान की ओर लौट पड़े।
मुनि-युगल द्वारा उच्चारण किये गये उपरोक्त श्लोक को जब यज्ञानुष्ठान में निरत, पास ही में बैठे हुए सय्यंभव भट्ट ने सुना तो वह इस पर ईहापोह करने लगा । वह इस बात को भलीभांति जानता था कि जैन श्रमण किसी दशा में असत्य-भाषण नहीं करते। अतः उसके मन में वास्तविक तत्वज्ञान के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की शंकाएं उठने लगीं। सय्यंभव के अन्तर्मन में उठे अनेक प्रकार के संशयों के तूफान ने जब उसे बुरी तरह झकझोरना प्रारम्भ किया, तो उसने यज्ञ का अनुष्ठान करवाने वाले अपने उपाध्याय से प्रश्न किया- "पुरोहितप्रवर! वास्तव में तत्व का सही रूप क्या है ?"
उपाध्याय ने उत्तर में कहा- "यजमान ! सही ज्ञान का सार यही है कि वेद स्वर्ग और मोक्ष देने वाले हैं। जिन्होंने तत्वज्ञान को जान लिया है, वे कहते हैं कि वेदों के अतिरिक्त और कोई तत्व नहीं है।"
इस पर सय्यंभव भट्ट ने क्रुद्ध स्वर में कहा- “सच, सच बतायो कि तत्व क्या है, अन्यथा मैं तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूंगा।" यह कह कर सय्यंभव भट्ट ने अपनी तलवार म्यान से बाहर निकाल ली।
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