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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [मधुबिंदु का दृष्टांत कहीं कोई सुरक्षित स्थान मिल जाय । उसकी दृष्टि पास ही के एक वट वृक्ष पर पड़ी। उसने वट वृक्ष के प्ररोहों को पकड़ने के लिये कूप के पास पहुंच कर छलांग मारी पोर वट वृक्ष के प्ररोहों को पकड़ लिया।
कुछ समय के लिये अपने आपको सुरक्षित समझ कर उसने बड़ की शाखा पर लटके-लटके ही कुए के अन्दर की पोर दृष्टि दौड़ाई, तो उसने देखा कि कुएं के बीचोंबीच एक बहुत बड़ा भयकर प्रजार अपना मुंह फैलाये, जिह्वा लपलपाते हुए उसकी ओर सतृष्ण, नेत्रों से देख रहा है और उससे प्राकार-प्रकार में छोटे चार अन्य सर्प कुएं के चारों कोनों में बैठे हुए उसको प्रोर मुंह खोले देख रहे हैं। भय के कारण उसका सारा शरीर कांग उठा । अब उसने ऊपर की प्रोर प्रांख उठाई तो देखा कि दो चूह. जिनमें से एक काले रंग का और दूसरा श्वेत रंग का है, जिस. शाखा के सहारे वह लटक रहा है, उसी को बड़ी तेजी से काट रहे हैं।
यह सब कुछ देखकर उसे पक्का विश्वास हो गया कि उसके प्राण निश्चित रूप से पूर्ण संकट में हैं और अब उसके बचाव का कोई उपाय नहीं है । इधर उस व्यक्ति के पदचिन्हों की टोह लेता हुआ वह जंगली हाथी भी कुएं के पास पहुंचा
और उस वृक्ष को जोर-जोर से हिलाने लगा। वृक्ष पर मधुमक्खियों का एक बहुत बड़ा छत्ता था। वृक्ष के हिलने से मधुमक्खियां उड़-उड़कर उस आदमी के रोमरोम में डंक लगाने लगी, जिसके कारण उसके शरीर में प्रसह्य पीड़ा और जलन होने लगी। अब तो साक्षात् मृत्यु उसकी आंखों के समक्ष नाचने लगी। मृत्यु के भय से वह सिहर उठा। .
सहसा मधुमक्खियो के छत्ते में से एक शहद की बून्द टपक कर उसके मुह में गिरी। उस घोर दुःखदायी और संकटपूर्ण स्थिति में भी मधु की एक बिन्दु के मधुर रसास्वाद पर मुग्ध हो वह अपने आपको सुखी समझने लगा।
ठोक उसी समय आकाशमार्ग से गमन करता हुआ एक विद्याधर उस ओर से निकला। उसने कुएं में लटकते हुए और सब ओर संकटों से घिरे उस व्यक्ति की दयनीय स्थिति पर दया कर उससे कहा - "प्रो मानव ! तुम मेरा हाथ पकड़ लो। मैं तुम्हें इस कुएं में से निकालकर और सब संकटों से बचाकर सुखद एवं सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दूगा।"
शाखा पर लटके एवं संकटों में फंसे हुए उस व्यक्ति ने उत्तर में विद्याधर से कहा - "तुम थोड़ी देर प्रतीक्षा करो। देखो वह मधुबिन्दु मेरे मुंह में टपकने वाली है।"
उस दयालु विद्याधर ने अनेक बार उस व्यक्ति को अपना हाथ पकड़ने और कुएं से बाहर निकलने के लिये कहा किन्तु हर बार उस व्यक्ति ने घोर दुःखो में फसे होते हए भी यही उत्तर दिया - "थोड़ी देर और प्रतीक्षा करो, मैं एक और मधुबिन्दु का आनन्द ले लं ।"
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