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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग
अठारह प्रकार के नाते जम्बूकुमार ने सहज शान्त स्वर में कहा - "प्रभव ! संसार में यह कोई निश्चित नियम नहीं है कि जो इस भव में पत्नी अथवा माता है, वह भागामी भव में भी पत्नी अथवा माता ही होगी। वास्तविकता यह है कि जो इस भव में माता है, वह भवान्तर में बहिन, पत्नी अथवा पुत्री भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार का विपर्यास भी होता है कि पति पुत्र के रूप में उत्पन्न हो सकता है, पिता भाई के रूप में अथवा अन्य किसी भी रूप में उत्पन्न हो सकता है । अपने कृतकमों के अनुसार जीव जन्मान्तरों में स्त्री, पुरुष अथवा नपुंसक रूप में उत्पन्न होता रहता है। ऐसी दशा में एक समय जो माता, बहिन अथवा पुत्री थी, उसके साथ पत्नी जैसा व्यवहार करते हुए किस प्रकार लालन-पालन परिपोषण किया जा सकता हैं ?"
प्रभव ने कहा - "महाभाग ! भवान्तरों के सम्बन्ध तो वस्तुतः विज्ञेय ही हैं, इसी कारगण वर्तमान की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए पिता, पुत्र, पति, पत्नी आदि के सम्बन्ध समझे और कहे जाते हैं।"
जम्बूकुमार ने उत्तर में कहा - "यह सब अज्ञान का दोष है। अज्ञान के कारण ही मानव अकार्य में कार्यबुद्धि से प्रवृत्त होता है अथवा कार्याकार्य को समझते हुए भी भोगलोलुपता एवं धन-सम्पत्ति के सुख से विमोहित हो प्रकरणीय दुष्कार्य में प्रवृत्त तथा संलग्न होता रहता है।"
जम्बूकुमार ने अपनी बात को प्रारम्भ रखते हुए कहा - "प्रभव ! भवान्तर की बात को छोड़ो। एक ही भव में किस तरह १८ प्रकार के सम्बन्ध हो जाते हैं और अज्ञानवश कितनी अनर्थपूर्ण घटनाएं घटित हो जाती हैं, इसका वृत्तान्त मैं तुम्हें सुनाता हूं।
कुबेरक्त एवं कुबरवत्ता का प्राख्यान ___ "किसो समय गथुरा नगर में कुबेरसेना नामकी एक रिणका रहती थी। जब वह पहली बार गर्भवती हुई तो उसके पेट में बड़ी पीड़ा रहने लगी। जब उसे वैद्य को बताया गया, तो उस अनुभवी वैद्य ने कहा - "इसके गर्भ में दो बच्चे हैं, इसी कारण इसे अधिक पीड़ा हो रही है। वस्तुतः इसे अन्य कोई रोग नहीं है।"
कुबेरसेना की माता ने अपनी पुत्री को बहुत समझाया कि वह गर्भस्राव की कोई अच्छी औषधि लेकर उस पीड़ा से छुटकारा पा ले किन्तु कुबेरसेना ने गर्भपात कराने की अपनी माता की बात को स्वीकार नहीं किया। समय पर कुबेरसेना ने एक पुत्र और एक पुत्री के युगल को एक साथ जन्म दिया । कुबेरसेना ने अपने पुत्र का नाम कुबेरदत्त और पुत्री का नाम कुवेरदत्ता रखा ।
एक दिन कुबेरसेना की माता ने उससे कहा - "बच्चों की विद्यमानता में तुम्हारा यह गणिका-व्यवसाय पूर्णतः ठप्प हो जायगा अतः तुम्हें इन बच्चों का किसी निर्जन स्थान में परित्याग कर देना चाहिये।"
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