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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [अवंती का प्रद्योत रा० उज्जयिनी और कौशाम्बी राज्यों का दीर्घकाल तक बड़ा स्नेहपूर्ण सम्बन्ध रहा। पारस्परिक सहयोग, व्यापार तथा कला-कौशल एवं विद्या के आदानप्रदान के कारण दोनों राज्यों के कोष और प्रजा की सुख समृद्धि में उन दिनों उल्लेखनीय अभिवृद्धि हुई।
कहा जाता है कि वत्सका नदी के तटवर्ती पर्वत पर आर्य सुधर्मा के श्रमणसंघ के मुनि धर्मयश के अनशनपूर्वक पण्डितमरण की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिये उज्जयिनी के राजा प्रवन्तीसेन और कौशाम्बी के राजा मरिणप्रभ ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था जो प्राज सांची के स्तूप के रूप में विख्यात. है।' इस सम्बन्ध में समीचीन रूप से शोध करने और ठोस प्रमाण एकत्रित करने की प्रावश्यकता है।
कौशाम्बी (वत्सराज्य) का पौरव राजवंश केवलिकाल के प्रथम चरण में कौशाम्बी पर पौरव राजवंश का शासन रहा पर द्वितीय चरण में जैसा कि उज्जयिनी के प्रद्योत राजवंश के विवरण में बताया जा चुका है - कौशाम्बी के राजा अजितसेन ने निसन्तान होने के कारण अवन्ती के राष्ट्रबर्द्धन के नवजात पुत्र को अपने पुत्र की तरह पाला और उसका नाम मणिप्रभ रखा।
अजितसेन की मृत्यु के पश्चात् कौशाम्बी के राज्य सिंहासन पर मणिप्रभ बैठा जो कि वण्ड प्रद्योत का प्रपौत्र था। इस प्रकार कौशाम्बी पर पौरव राजवंश के स्थान पर प्रद्योत राजवंश का अधिकार हो गया।
कौशाम्बी पति मणिप्रभ के राज्यकाल की कतिपय घटनामों का प्रद्योत राजवंश के परिचय में उल्लेख कर दिया गया है। उन घटनामों के अतिरिक्त केवलिकाल में कौशाम्बी के राजवंश से सम्बन्धित कोई ऐतिहासिक महत्त्व की घटनामों के घटित होने का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता।
कलिंग का चेदिराजवंश केवलिकाल में वीर नि० सं० १७ तक चेदि राजवंश के राजा सुलोचन का राज्य रहा। हिमवन्त स्थिविरावली के उल्लेखानुसार वीर नि० सं० १८ में सुलोचन के मपुत्रीवस्था में निधन पर वैशाली गणराज्य के अधीश्वर महाराज चेटक के पुत्र शोभनराय को कलिंग के सिंहासन पर अभिषिक्त किया गया। हिमवन्त स्थिविरावली में यह उल्लेख किया गया है कि वैशाली के अधिपति चेटक ने कूरिणक के साथ युद्ध में अपनी पराजय के पश्चात् अनशन द्वारा स्वर्गारोहण किया। उनके पुत्रों में से शोभनराय नाम का एक पुत्र अपने श्वसुर कलिंगपति सुलोचन के पास कनकपुर चला गया । कलिंगपति सुलोचन के कोई पुत्र ' जैन परम्परा नो इतिहास, भा० १, (त्रिपुटी महाराज) [पृ० ७४, ७६]
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