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डाकू सरदार प्रभव ]
श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य प्रभवस्वामी
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की पूर्ति के लिये उसने तालोद्घाटिनी विद्या- ( मजबूत से मजबूत तालों को अनायास ही खोल डालने की विद्या) और " अवस्वापिनी विद्या " - ( लोगों को प्रगाढ़ निद्रा में सुला देने वाली विद्या) - इन दो विद्याओं की भी प्रयत्नपूर्वक साधना कर ली। अपने शक्तिशाली डाकूदल और उपरोक्त दोनों विद्यानों के बल पर डाकू सरदार प्रभव बड़े से बड़े शहरों में रहने वाले धनाढ्यों के घरों में निशंक हो प्रवेश करता और बिना लहू की एक बूंद बहाये ही अपार सम्पत्ति लूटने में सफल हो जाता । चारों प्रोर डाकू सरदार प्रभव का भयंकर प्रातंक
छा गया ।
प्रभव द्वारा श्रेष्ठी ऋषभस्त के घर डाका
एक दिन डाकू सरदार प्रभव को उसके चरों ने सूचना दी कि राजगृह नगर में कुबेर के समान अपरिमित सम्पत्ति के स्वामी ऋषभदत्त श्रेष्ठी के पुत्र जम्बूकुमार का पाठ बड़े-बड़े सम्पत्तिशाली श्रेष्ठियों की ८ कन्याओं के साथ विवाह हुआ है और विवाह के अवसर पर जम्बूकुमार को अन्य अपरिमित दहेज के साथ-साथ कई करोड़ स्वर्णमुद्राएं भी प्राप्त हुई हैं ।
चरों के मुंह से जम्बूकुमार को दहेज में मिलने वाली सम्पत्ति र श्रेष्ठी ऋषभदत्त के घर में विद्यमान विपुल सम्पत्ति का व्यौरा सुन कर डाकुनों ने अपने सरदार प्रभवकुमार से कहा- "स्वामिन्! इस अवसर का लाभ उठाने पर एक ही वार में इतनी सम्पत्ति मिल जायगी कि उससे हम सब लोगों की अनेक पीढ़ियां सुखपूर्वक जीवनयापन कर सकेंगी।"
प्रभव ने इसे स्वरिणम अवसर समझ कर अपने ५०० साथियों के साथ शस्त्रास्त्रों से सजधज कर राजगृह की ओर प्रयाण कर दिया।
रात्रि के समय तालोद्घाटिनी विद्या के प्रयोग से मुख्य द्वार खोल कर प्रभव ने अपने ५०० साथियों के साथ जम्बूस्वामी के गृह में प्रवेश किया । उसने अवस्वापिनी विद्या के प्रयोग से विवाहोत्सव पर एकत्रित हुए सभी स्त्री-पुरुषों एवं घर के समस्त लोगों को प्रगाढ निद्रा में सुला दिया । तालोद्घाटिनी विद्या के प्रभाव 'जम्बूकुमार के सुविशाल भव्य भवन के सभी कक्षों के ताले तत्क्षरण खुल गये । प्रभव एवं उसके साथियों ने देखा कि सभी कक्ष अनमोल एवं अपार सम्पत्ति से भरे पड़े हैं ।
चोरों का स्तंभन
प्रभव के ५०० साथियों ने अवस्वापिनी विद्या के प्रभाव से प्रगाढ़ निद्रा में सोये हुए जम्बूस्वामी के अतिथियों के अंग-प्रत्यंगों से रत्नजटित अनमोल आभूषण उतारना और विभिन्न कक्षों से बहुमूल्य सम्पत्ति एकत्रित करना प्रारम्भ किया ।
जम्बूस्वामी पर अवस्वापिनी विद्या का किंचित् मात्र भी प्रभाव नहीं हुआ था । जब उन्होंने देखा कि अतिथियों के अंगप्रत्यंग पर से चोरों द्वारा आभूषण
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