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३. प्राचार्य प्रभवस्वामी
जम्बूस्वामी के पश्चात् भगवान् महावीर स्वामी के तृतीय पट्टधर प्राचार्य प्रभवस्वामी हुए.। आप ३० वर्ष गृहस्थ-पर्याय में, ६४ वर्ष सामान्य व्रतपर्याय में और ११ वर्ष तक युगप्रधान-प्राचार्य के रूप में रह कर शासन सेवा करते रहे। आपकी कुल व्रतपर्याय ७५ वर्ष और पूर्ण प्राय १०५ वर्ष थी। आचार्य प्रभवस्वामी वीर निर्वाण संवत् ७५ में स्वर्ग पधारे।' आपका जीवन परिचय संक्षेप में इस प्रकार है :- प्रभवकुमार विन्ध्याचल की तलहटी में स्थित जयपुर नामक राज्य के कात्यायन गोत्रीय क्षत्रिय महाराजा विन्द्य के ज्येष्ठ पुत्र थे । राजकुमार प्रभव का जन्म ईसा पूर्व ५५७में विन्द्य प्रदेश के जयपुर नगर में हुआ । इन के लघु भाई का नाम सुप्रभ था। दोनों का लालन-पालन राजकुल के अनुरूप बड़े दुलार और प्यार के साथ हमा। राजकुमार प्रभव को शिक्षा-योग्य वय में राज्याधिकारी राजकुमारों के अनुरूप शिक्षा-दीक्षा दी गई । वे बड़े साहसी और तेजस्वी राजकुमार थे।
जिस समय राजकुमार प्रभव किशोरावस्था पार कर १६ वर्ष के हुए उस समय उनके पिता जयपुर नरेश विन्द्य किसी कारणवश उनसे अप्रसन्न हो गये । उन्होंने क्रुद्ध हो राजकुमार प्रभव को राज्य के अधिकार से वंचित कर दिया और अपने कनिष्ठ पुत्र सुप्रभ को अपने राज्य का उत्तराधिकारी युवराज घोषित कर दिया।
डाकू सरदार प्रमव अपने न्यायोचित पतक अधिकार से वंचित कर दिये जाने के कारण राजकुमार प्रभव को बड़ा मानसिक आघात पहुंचा और वे पिता से रुष्ट हो घरद्वार छोड कर विन्द्य पर्वत के विकट और भयानक जंगलों में रहने लगे। विन्द्याटवी में रहने वाले लुटेरों ने साहसी एवं युवा राजकुमार प्रभव के साथ संपर्क स्थापित किया। लूट के अभियानों में राजकुमार प्रभव उन लुटेरों के साथ रहने लगे। प्रभव के पराक्रम और साहस को देख कर डाकुओं के गिरोह ने उन्हें अपना सरदार बना लिया। अब डाकू-सरदार प्रभव अपने ५०० डाकुओं के शक्तिशाली दल के साथ दिन-दहाड़े बड़े-बड़े कस्बों और ग्रामों को आये दिन लूटने लगे । डाकू-सरदार प्रभव को डकैती के अभियानों में ज्यों-ज्यों सफलताएं प्राप्त होती गई त्यों-त्यों उसकी महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ती गई । अपनी महत्वा
गुरुपट्टावली, तपागच्छ पट्टावली आदि अनेक ग्रन्थों में गणना की भूल के कारण प्रभवस्वामी की सामान्य वनपर्याय ४४ वर्ष लिख दी है जब कि वह ६४ वर्ष होती है । गणना की इस त्रुटि के कारण प्रार्य प्रभव की कुल प्रायु भी उन स्थलों पर ८५ वर्ष हो लिखी है । वस्तुतः प्रा० प्रभव की कुल प्रायु १०५ वर्ष हो टीक बैठती है ! - संपादक
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