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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [अवंती का प्रद्योत रा.
पश्चात् ही मैंने तुम्हारे जिस. लघु सहोदर का परित्याग कर दिया था, वही तो प्राज का कौशाम्बीपति मणिप्रभ है । एक प्रारण-दो शरीर-सहोदरों में परस्पर यह युद्ध कैसा?'
वास्तविकता से अवगत होते ही प्रवन्तीसेन ने स्नेहविह्वल स्वर में कहा"पूजनीये ! मैं अज्ञानतावश अपने दक्षिण हस्त से स्वयं के वाम हस्त को काटने जैसी मूर्खता कर रहा था। आपने हमें उपकृत किया है । क्षण भर पहले तलवार का प्रहार करने के लिये उद्यत मेरे बाह यूगल अब मेरे लघु बान्धव को दुलार भरे प्रगाढ प्रालिंगन में प्राबद्ध करने के लिये लालायित हो रहे हैं। कहां है मेरा वह प्राणप्रिय सहोदर?"
तत्पश्चात् दोनों भाइयों का पहली बार मिलन हुआ। चरणों पर झुकते हुए अपने छोटे भाई को प्रवन्तीसेन ने भुजपाश में प्राबद्ध कर बड़ी देर तक अपने हृदय से चिपकाये रखा । दो राजवंशों के पीढ़ियों के वैर को दोनों नरेशों ने अपने प्रेमाश्रुनों के प्रवाह में बहा दिया । क्षरण भर में ही यह समाचार दोनों सेनामों के योद्धानों और कौशाम्बी के घर-घर में विद्युत् के संचार की तरह प्रसृत हो गया। योद्धाओं के हाथों की चमचमाती हुई तलवारें म्यानों में रख दी गईं, शतघ्नियों के कानों में कैंचियां डाली जाकर उनके मुख नीचे की ओर झुका दिये गये और रणभेरी सेंधव आदि रणवाद्यों के घोरारव के स्थान पर मृदंग, मशक, झांझ, बीणा, शहनाई प्रादि की करर्णप्रिय स्वरलहरियों की गंज से समस्त वातावरण मृदुल, मोहक और मादक बन गया। क्षरण भर पहले प्रज्ञानवश जो सेनाएं एकदूसरे के खून से होली खेलने को उद्यत थीं, वे अब अज्ञान का परदा हटते ही परस्पर एक दूसरे को प्रबीर-गुलाल के रंग से शराबोर करने लगीं। इस प्रकार भगवान् महावीर द्वारा दिये गये विश्वकल्याणकारी अहिंसा के दिव्य संदेश को जन-जन तक पहुंचाने वाली सजग साध्वी धारिणी ने उस समय की मानवता को . एक भीषण नरसंहार से बचा लिया ।
बड़े प्रानन्दोल्लास और सम्मान के साथ अवन्तीसेन का कौशाम्बी में नगर प्रवेश करवाया गया। थोड़ी ही देर पहले जो कौशाम्बी के नागरिक मातताई के रूप में पाये हए प्रवन्तीसेन से प्रातंकित थे वे अब उसे अपना प्रिय अतिथि समझकर उस पर मानन्दविभोर हो पुष्पों की वर्षा करने लगे। अपने छोटे भाई के आग्रह पर अवन्तीसेन को एक मास तक कौशाम्बी में रुकना पड़ा। दोनों भाइयों ने सह-अस्तित्व की भावनाओं का समादर करते हुए दोनों राज्यों की प्रजा की सुख-समृद्धि में अभिवृद्धि करने वाली अनेक नीतियों का निर्धारण किया। अवन्तीसेन ने कौशाम्बी राज्य की जनता के हित के लिये अनेक लोकोपयोगी कार्यों को सम्पन्न करने हेतु अपार धनराशि दी। एक मास तक कौशाम्बी में अनेक प्रकार के मंगलमय महोत्सव मनाये गये।
अन्ततोगत्वा एक मास पश्चात् प्रवन्तीसेन ने उज्जयिनी की ओर प्रस्थान किया। उसने पापहपूर्वक अपने छोटे भाई मणिप्रभ को भी साथ लिया। दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only
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