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केवलिकाल : श्रायं जम्बू
वस्तुतः नन्द कौन था ?
आवश्यकचूरिण, आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, परिशिष्टपर्व तथा अनेक अन्य जैन ग्रन्थों में मगधसम्राट उदायी के पश्चात् मगध के राज्यसिंहासन पर प्रासीन होने वाले नन्द को नापितदास, नापितपुत्र, एवं वैश्यापुत्र बताया गया है। इसके विपरीत वायुपुराण' और श्रीमद्भागवत पुराण में इस नन्द का नन्दिवर्द्धन के नाम से परिचय देते हुए इसे उदायी का पुत्र बता कर इसकी गरणना नार्गदशकों में की गई है। इस प्रकार सनातन परम्परा के इन दोनों मान्य पुराणों में नन्दिवर्द्धन को शिशुनागवंशी और उदायों का पुत्र माना गया है। जैन परम्परा के ग्रन्थों में मगध के वाहीक कुलोद्भव शिशुनागवंशी राजाओं के नाम क्रमशः जितशत्रु, प्रसेनजित् श्रेणिक ( बिम्बसार), कूणिक ( अजातशत्रु) मौर
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हत्वा तेषां यशः कृत्स्नं, शिशुनाको भविष्यति ॥ १७३ ॥ | वाराणस्यां सुतस्तस्य, संप्राप्स्यति गिरिव्रजम् । शिशुनाकस्य वर्षाणि चत्वारिशद्भविष्यति ॥ १७४ ।। शकवर्णः सुतस्तस्य षट्त्रिंशच्च भविष्यति ।
ततस्तु विशति रांजा क्षेमवर्मा भविष्यति ।। १७५ ।। प्रजातशत्रुमविता पंचविशत्समा नृपः ।
चत्वारिंशत्समा राज्यं क्षत्रौजा प्राप्स्यते ततः ॥ १७६ ॥ प्रष्टाविशत्समा राजा बिबिसारों भविष्यति ।
पंचविशत्समा राजा दर्शकस्तु भविष्यति ।। १७७।। उदायी भविता तस्मात्त्रयस्त्रिशत्समा नृपः । द्वाचत्वारिंशत्समा भाव्यो राजा वं नन्दिवर्द्धनः । चत्वारिंशस्त्रयं चैव महानन्दो भविष्यति ।।१७६ ।। इत्येते भवितारो वं शशुनाका नृपा दश ।. शतानि त्रीणि वर्षाणि द्विषष्ट्यम्यधिकानि तु ।। १६० ।।
शिशुनागस्ततो भाग्यः, काकवर्णस्तु तत्सुतः । क्षेमधर्मा तस्य सुतः, क्षेत्रज्ञः क्षेमधर्मजः ||५| विषिसारः सुतस्तस्याजातशत्रुर्भविष्यति । दर्शकस्तत्सुतो भावी दर्शकस्याजयः स्मृतः ||६| नन्दिवर्द्धन प्राजेयो, महानन्दिः सुतस्ततः । शिशुनागा दर्शवते पष्ट्युत्तर शतत्रयम् ॥७॥ समा भोक्ष्यन्ति पृथिवों, कुरुश्रेष्ठ कलौ नृपाः ।
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[ वायुपुराण, प्र० ६१]
स्पष्टीकरण : रेखांकित पद के स्थान पर निम्नलिखित पद होना चाहिये क्योंकि इन नागदशकों का कुल मिला कर शासनकाल ३६२ वर्ष नहीं अपितु ३३२ वर्ष ही होता है:द्वात्रिंशदधिकानि तु ॥
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- सम्पादक
[ श्रीमद्भागवत महापुराण, स्कम्भ १२, ०१ ]
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