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वस्तुतः नन्द कौन था ? ]
केवलिकाल : आयं जम्बू
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अथवा लिपिक के दोष के कारण नामभेद, कालभेद आदि उन प्राचीन ग्रन्थों में मिल सकते हैं। पर इसके लिये किसी प्रकार की दूषित भावना का दोषारोपण उन पर नहीं किया जा सकता ।
इन सब वास्तविकताओं पर विचार करने के पश्चात् पुराणों में उदायी के उत्तराधिकारी मगधपति नन्दिवर्द्धन और नन्दिवर्द्धन की मृत्यु के अनन्तर मगध के राज्यसिंहासन पर प्रारूढ़ होने वाले महानन्दी को जो विशुद्ध शिशुनागवंशी बताया गया है, उस तथ्य को किसी भी दशा में उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखा
जा सकता ।
अब प्रश्न यहां यह उपस्थित होता है कि जैन परम्परा के ग्रन्थों में उदायी को प्रपुत्र और उसके पश्चात् मगध के राज्यसिंहासन पर बैठने वाले नन्द को नापित एवं वेश्यापुत्र क्यों बताया गया है ? यद्यपि, जैन ग्रन्थों में इस प्रकार का कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है, जिसका आश्रय लेकर इस प्रश्न का सर्वमान्य रूप से समाधान किया जा सके- किन्तु वायुपुराणादि में उपलब्ध एतद्विषयक सामग्री के सन्दर्भ में इस प्रश्न पर विचार करने और अनुमान प्रमारण का सहारा लेने पर इस प्रश्न का हल ढूंढा जा सकता है ।
शिशुनाग से लेकर महानन्दी तक के नागदशकों का संक्षिप्त उल्लेख करने के पश्चात् भागवतकार और वायुपुराणकार ने लिखा है:
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मगधपति महानन्दी की शूद्रा पत्नी के गर्भ से नन्द नामक एक बड़ा बलवान् पुत्र होगा, जो महापद्म नामक निधि का स्वामी होगा और इसी कारण वह महापद्म नाम से भी विख्यात होगा । महापद्म समस्त क्षत्रिय राजानों का अन्तकरेगा । उस महापद्म के समय से ही राजा लोग प्रायः शूद्र और प्रधार्मिक होंगे। वह पृथ्वी का एकच्छत्र शासक होगा । उसकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकेगा । क्षत्रान्तक होने के कारण वह एक प्रकार से दूसरा परशुराम होगा । उसके सुमाल्य आदि आठ पुत्र होंगे जो १०० वर्ष तक, पृथ्वी के राज्य का उपभोग करेंगे । "
वायुपुराण में भी पर्याप्तरूपेण इससे मिलता-जुलता ६ नन्दों का परिचय दिया गया है, जो इस प्रकार है :
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महानन्दिसुतो राजन् शूद्रीगर्भोद्भवो बली ||८|| महापद्मपतिः कश्चिन्नन्दः क्षत्रविनाशकृत् । ततो नृपाः भविष्यन्ति शूद्रप्रायास्त्वधार्मिकाः || स एकच्छत्रां पृथिवीमनुल्लंघितशासनः । शासिष्यति महापद्म द्वितीय इव भार्गवः ॥ १०॥ तस्य चाष्टो भविष्यन्ति सुमाल्य प्रमुखाः सुता । य इमां भोषयन्ति महीं, राजानः स्म शतं समाः ॥ ११ ॥
[ श्रीमद्भागवत, स्कन्ध १२, अध्याय १ ]
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