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पाटलीपुत्र का निर्माण! केवलौकाल : आर्य जम्बू
२६३ तदनन्तर वह विशेषज्ञों का दल मगध की राजधानी के लिये नवीन नगर बसाने हेतु उस स्थान को सर्वश्रेष्ठ स्थान निश्चित कर महाराज उदायी के पास चम्पा पहुंचा। उन लोगों से उस स्थान की विशेषता और महिमा सुन कर मगधपति उदायी बड़ा प्रसन्न हुप्रा । उसने मुख्यामात्य को आदेश दिया कि शुभ मुहूर्त में गंगा के तट पर पाटली वृक्ष के पास नगर के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया जाय।
महाराज उदायी के आदेशानुसार इस कार्य से सम्बन्धित मगध के उच्च निर्माण अधिकारी, स्थापत्य एवं वास्तुकला के लब्धप्रतिष्ठ शिल्पी, निमित्तज्ञ और हजारों कर्मकार गंगातट पर पाटली वृक्ष के पास पहुंचे। नगरी के लिये प्रावश्यक भूमि का माप करना प्रारम्भ किया गया। नाप करने के लिये सांकलें (जरी) डाली जाने लगीं। मुख्य नैमित्तिक ने कहा - "डोरी को पकड़े हुए पहले पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बढ़ो । जब तक शृगाल न बोले तब तक पश्चिम दिशा की प्रोर बढ़ते ही जामो। शृगाल के बोलते ही वहां रुक जाम्रो और फिर पश्चिम दिशा से उत्तर दिशा की मोर बढ़ते जानो। उत्तर दिशा में भी बढ़ते हुए जिस जगह पहुंचने पर शृगाल की ध्वनि सुनो वहीं रुक जागो और फिर वहां से पूर्व दिशा की ओर बढ़ो। शृगाल का शब्द सुनते ही पूर्व की ओर बढ़ना भी रोक दो तथा वहां से दक्षिण दिशा की ओर बढ़ना प्रारम्भ करो और शृगाल के बोलते ही वहां रुक जाम्रो।"
___ नैमित्तिक के परामर्शानुसार पूर्व से पश्चिम, पश्चिम से उत्तर, उत्तर से पूर्व प्रौर अन्त में पूर्व से दक्षिण की पोर डोरी डालने वाले बढे। शृगाल के बोलते ही उस दिशा की ओर बढ़ना बन्द कर उपरिवरिणत दिशाक्रम से बढ़ते गये और इस प्रकार नगर बसाने के लिए एक सुविस्तीर्ण भूखण्ड का माप किया जाकर उस पर चारों पोर चिन्ह अंकित कर दिये एवं नगर-निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया गया। उस नगर के निर्माण में छोटे-से-छोटे कर्मकार से लेकर बड़े-से-बड़े शिल्पी ने अथक श्रम, अद्भुत कला-कौशल, और उत्कट कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया। विस्तीर्ण राजपथों, सुन्दर मुख्य मागों, सीधे उपमार्गों, गगनचुम्बी राजप्रासादों, भव्य भवनों, विशाल व्यापारिक केन्द्रों, प्रति सुरम्य अतिथिगृहों, माकर्षक बाजारों, स्थान-स्थान पर वापियों, कूपों, तड़ागों एवं वाटिकामों आदि से सुशोभित प्रति कमनीय नगरी का निर्माण पूरा हुमा । शुभ मुहूर्त में उदायी ने उस नगर का नाम पाटलीपुत्र रखा और मगध की राजधानी चम्पा से हटाकर इसी पाटलीपुत्र में प्रतिष्ठापित की।
सोन नदी पौर गंगा नदी के संगम स्थल के पास गंगा नदी के दक्षिणी तट पर पाटलीपुत्र नामक यह नगर मगधपति उदायी ने अपने राज्यकाल के चौथे वर्ष में बनवाया, इस प्रकार का उल्लेख वायुपुराण में किया गया है । यथा
अष्टाविंशस्समा राजा दिविसादो भविष्यति । पंचविंशत्समा राजा दर्शकस्तु भविष्यति ॥१७७॥
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