________________
म० अमात्य वंश का उद्भव] केवलिकाल : प्रार्य जम्बू
२६९ पुत्र नगर में पाया और वह उस नगर से कुछ ही दूर पर घर बनाकर वहां निवास करने लगा। कालान्तर में एक स्थविर मुनि अपने शिष्यों सहित विचरण करते हुए कपिल ब्राह्मण के निवासस्थान पर पहंचे। उस समय सूर्यास्त होने ही वाला था इसलिये वे मुनि कपिल से प्राज्ञा प्राप्त कर अपने शिष्यों सहित उसकी यज्ञशाला में रात्रिविश्राम के लिये ठहर गये।।
कपिल के मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि ये जैन साधु धर्म के गूढ़ रहस्य और तत्वों के ज्ञाता हैं या नहीं। वह रात्रि के समय उनके पास पहुंचा और उसने उन मुनि के साथ धर्मचर्चा प्रारम्भ की। मुनि के मुख से जीव, अजीवादि तत्वों और धर्म की अश्रुतपूर्व विशद व्याख्या सुनकर वह मुनि-चरणों में श्रद्धावनत हो गया और उन्हें अपना गुरु बनाकर उसने उनसे श्रमणोपासक धर्म अंगीकार कर लिया। दूसरे दिन वे मनि वहां से विहार कर अन्यत्र विचरण करने लगे।
. कपिल द्वारा श्रावकधर्म स्वीकार किये जाने के कुछ ही समय पश्चात् एक अन्य प्राचार्य विहारक्रम से विचरण करते हए वहां पहुंचे और कपिल से अनुज्ञा प्राप्त कर उसके घर में ठहरे । दूसरे ही दिन कपिल की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया । उस नवजात शिशु को व्यन्तरियों ने अपने प्रभाव से अभिभूत कर निश्चेष्ट कर दिया। कपिल जैन साधनों के तप, त्याग एवं तेजस्विता से बड़ा प्रभावित था। उसने अपने उस निस्संज्ञ पुत्र को उठाकर साधुनों द्वारा सुखाने के लिये उल्टे रखे गये एक पात्र के नीचे रख दिया। उन तपोधन महर्षियों के पात्रजल के स्पर्शमात्र से ही शिशु व्यन्तरियों के दुष्ट प्रभाव से सदा के लिये विमुक्त हो पूर्णरूपेण स्वस्थ हो गया। मुनियों द्वारा कल्प किये जाने वाले पात्रों के जल के प्रभाव से उस शिशु की जीवन-रक्षा हुई, इस स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिये कपिल ने अपने उस पुत्र का नाम कल्पाक रखा । कल्पाक ने अपने पिता से समस्त विद्याओं एवं जैनागमों का अध्ययन किया। कालान्तर में कल्पाक के माता और पिता का देहान्त हो गया।
__कल्पाक अपने समय का एक उच्च कोटि का विद्वान् था। उसके घर पर विभिन्न विषयों के विद्यार्थियों की भीड़ रहने लगी। कल्पाक जब नगर में जाता तो उसके पीछे उसके शिष्यों की भीड़ लग जाती। पाटलिपुत्र के निवासी कल्पाक का बड़ा सम्मान करते थे। अपने पिता द्वारा प्राप्त श्रावक धर्म के संस्कारों के कारण कल्पाक बड़ा संतोषी विद्वान् था। धन-सम्पत्ति के संग्रह करने का कभी कोई विचार तक भी उसके मन में उत्पन्न नहीं हुआ। अनेक विद्वानों ने अपनीअपनी कन्याओं के साथ पाणिग्रहण कर लेने की प्रार्थनाएं कल्पाक से की पर कल्पाक ने विवाह करना स्वीकार नहीं किया। ' तस्यामेव हि तामस्यां धर्मदेशनया तया । श्रावकः कपिलो जज्ञेऽषाचार्या ययुरन्यतः ॥१३॥ [परिशिष्ट पर्व, सर्ग ७)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org