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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [पाटलीपुत्र का निर्माण उदायी भविता तस्मात्त्रयस्त्रिंशत्समा नृपः । सवै पुरवरं राजा प्रथिव्यां कुसुमाह्वयं । गंगाया दक्षिणे कूले चतुर्थेऽन्दे करिष्यति ॥१७८।। [वा० पु० अ० ६१]
जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों, वैदिक परम्परा के पुराणग्रन्थों और गर्ग संहिता में यही अभिमत सर्वसम्मत रूप से दिया गया है कि मगधपति उदायी, उदयाश्व अथवा उदाई भट्ट ने पाटलीपुत्र नगर बसाया । वायुपुराण में कूणिक का दर्शक के नाम से परिचय दिया गया है।
अशोक की राज्य-सभा में यूनान की ओर से मेगस्थनीज नामक राजदूत कई वर्षों तक पाटलीपुत्र में रहा। उसने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में पाटलीपुत्र का वर्णन करते हुए लिखा है :
"पाटलीपुत्र नगर का आवासस्थल ८० स्टूडिया अर्थात् ६ माइल लम्बा, १५ स्टुडिया अर्थात् १ माइल और १२७० गज चौड़ा है। इसके चारों ओर लकड़ी का एक बड़ा सुदृढ़ परकोटा बना हुआ है जिसमें ५७० कोठे, (बुर्जे) और ६४ दरवाजे बने हए हैं । इस परकोटे को चारों ओर से घेरे हुए एक खाई है, जो ६० फीट गहरी और २०० गज चौड़ी है।"
वर्तमान में परिवर्तित रूप से पाटलीपुत्र प्राज भी विद्यमान है, जिसको पटना कहते हैं।
जो कोई भी नवागन्तुक पाटलीपुत्र को देखता, उसके मुख से सहसा यही उद्गार निकल पड़ते - "अरे ! यह तो असीम प्राकाश में प्रवस्थित सुरलोक की राजधानी अलकापुरी ही प्रवनीतल पर अवतरित हो गई है।"
इस प्रकार स्वल्प समय में हो पाटलीपुत्र की ख्याति दिग्दिगन्त में व्याप्त हो गई । देश-देशान्तरों से बड़े-बड़े लक्ष्मीपति श्रेष्ठी, उद्योगपति, समस्त विद्यानों के पारगामी विद्वान, ज्योतिर्विद, साहित्यिक, आयुर्वेद-विशारद, वैयाकरणी, सामन्त, शिल्पी और कलाकार प्रादि प्रा-मा कर पाटलीपुत्र के स्थायी निवासी वनने लगे।
महाराज उदायी द्वारा पाटलीपुत्र को मगध की राजधानी बनाये जाने के पश्चात् पाटलीपुत्र भारतवर्ष का एक प्रमुख, सुन्दर, समृद्ध और अजेय नगर समझा जाने लगा। शनैः शनैः पाटलीपुत्र उद्योग, व्यापार, कलाकौशल, संस्कृति, शिक्षा और धर्म का एक बहत महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गया । उदायी ने स्वयं द्वारा बसाये गये इस नगर की श्री-अभिवृद्धि में किसी प्रकार की कोर-कसर न रखी। वह पाटलीपुत्र में रहते हुए न्याय, नीति और धर्मपूर्वक शासन करने लगे। उन्होंने अपनी मन्त्रिपरिषद, माण्डलिक राजाओं, सामन्तों, विद्वानों, विशेषज्ञों और महापौरों के परामर्श से सभी वर्गों के लोगों के लिये सभी प्रकार की सुखसुविधाओं का समुचित रूप से यथासमय प्रबन्ध कर पाटलीपुत्र की चहंमुखी प्रगति करने में बड़ी तत्परता से कार्य किया। उदायी बड़ा दुर्घर्ष योद्धा, नीतिनिपुण और कुशल शासक था। उसने उद्दण्ड सामन्तों और युद्धप्रिय राजामों को
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