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पाटलीपुत्र का निर्माण] केवलिकाल : प्रार्य जम्बू
'२.५६ अग्निकापुत्र ने सभी शास्त्रों का समीचीन रूप से अध्ययन किया । निरतिचाररूप से विशुद्ध संयम का पालन करते हुए अग्निकापुत्र में दुष्कर घोरातिघोर तपश्चरण द्वारा अपने पूर्वसंचित कर्मसमूह को ध्वस्त करना प्रारम्भ किया। प्राचार्य जयसिंह ने अग्निकापुत्र को सभी भांति सुयोग्य समझ कर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और उनके दिवंगत होने पर अग्निकापुत्र प्राचार्य बने।
एक समय वे अपने श्रमणसंघ के साथ विचरण करते हए गंगातट पर बसी हुई पुष्पभद्रा नगरी में आये । उस समय पुष्पभद्रा नगरी पर पुष्पचूल नामक राजा का शासन था। उसकी रानी का नाम पुष्पचूला था जो कि वस्तुतः उस (पुष्पचूल) के साथ युगल रूप से उत्पन्न हई उसकी सहोदरा थी । युगल रूप से उत्पन्न हए उन दोनों बहिन-भाइयों में प्रगाढ़ स्नेह था। उनके पिता महाराज पुष्पकेतु ने अपने पूत्र और पूत्री का प्रगाढ़ स्नेह देख कर लोकनियम के विरुद्ध उनका विवाह कर दिया। इस अनंतिक विवाह सम्बन्ध से दुखित हो पुष्पचूल और पुष्पचूला की माता पुष्पवती ने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली और अनेक वर्षों तक तपश्चरण करके अन्त में समाधिमरण द्वारा देवत्त्व प्राप्त किया । राजा पुष्पकेतु की मृत्यु के पश्चात् पुष्पचूल पुष्पभद्रा के राज्य सिंहासन पर बैठः और वे दोनों वहिन-भाई अनेक वर्षों तक पति-पत्नी रूप से दाम्पत्य जीवन बिताने लगे । देवरूप से उत्पन्न हुई पुष्पवती ने पूर्व स्नेहवश सोचा कि इस लोकविरुद्ध वैवाहिक सम्बन्ध और विषयभोगों में भासक्त रहने के कारण पुष्पचूला कहीं नरक में न चली जाय । पुष्पचूला के भावी जीवन को सुधारने की इच्छा से प्रेरित हो उस देव ने पुष्पचूला को स्वप्नों में नरक के दारुण दृश्य दिखाने प्रारम्भ किये । स्वप्न में उन अत्यन्त दुखदायक दृश्यों को देखने के कारण पुष्पचूला अहर्निश कांपती हुई शोकसमुद्र में डूबी रहती । पुष्पचूल द्वारा चिन्ता का कारण पूछने पर पुष्पचूला ने स्वप्न में देखे गये घोर कष्टदायक दृश्यों का विवरण सुनाया। पुष्पचूल ने अनेक प्रकार के शान्तिपाठ करवाये पर देव पूष्पचूला को स्वप्नों में नरक के पहले दिखाये गये दृश्यों से पौर अधिक भयंकर दृश्य दिखाने लगा। राजा ने अनेक पाखण्डियों को बुला कर पुष्पचूला द्वारा देखे गये स्वप्नों के सम्बन्ध में पूछा पर कोई पुष्पचूला . द्वारा देखे गये दृश्यों का यथातथ्यरूपेण चित्रण कर उसको जिज्ञासा को शान्त करने में समर्थ नहीं हो सका।
मनिकापुत्र के प्रागमन का समाचार सुन कर राजा और रानी ने उनसे भी उन स्वप्नों के सम्बन्ध में पूछा । पत्रिका पुत्र ने नरकों के नामोल्लेख के साथ-साथ पुष्पचूला द्वारा देखे गये सभी स्वप्नों का ठीक उसी प्रकार से वर्णन किया जिस प्रकार से उसने (पुष्पचूला ने) स्वप्नों में देखा था।
अपने स्वप्नों का बिना किसी न्यूनाधिक्य से वास्तविक चित्रण सुन कर पुष्पचूला ने प्रश्न किया- "भगवन् ! क्या मापने भी कभी इस प्रकार के स्वप्न देते हैं, जिसके कारण पाप उन स्वप्नों का ठीक उसी प्रकार से वर्णन कर रहे हैं, जैसा कि मैंने देखा था?"
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