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वीर कवि मौर बंबू) केपलिकाल : आर्य जम्बू
२३७ जम्बू स्वामी द्वारा महाराज श्रेणिक की हस्तिशाला से बन्ध तुड़ा कर भागे हुए मदोत्मत्त हाथी को वश में करने और केरल के विद्याधरराज मृगांक के शत्रु हंसद्वीप के शक्तिसाली विद्याधरपति चन्द्रचूल को युद्ध में पराजित करने की घटनाएं वीर कवि के उल्लेखानुसार जम्बू स्वामी के विवाह का दिन निश्चित हो जाने के पश्चात् की हैं।
स्वयं वीर कवि ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि आर्ष-ग्रन्थों अथवा उनके पूर्ववर्ती जम्बूचरित्रों में वसंतवर्णन, हाथी का मदमर्दन और केरल में रत्नचूल विद्याधर के साथ जम्बूस्वामी के युद्ध का वर्णन नहीं है । अपने ग्रन्थ में केवल स्वयं द्वारा किये गये इस प्रकार के वर्णन के लिये गुरुजनों से क्षमायाचना करते हुए उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि काव्य के अंग व रसों को समृद्ध करने हेतु घटित अथवा अघटित रचनाओं का विचारक कवियों द्वारा जो युक्तिसंगत वर्णन किया जाता है वह सच्चरित्रों में घटित होना संभव माना जाता है। कवि वीर के इस कथन का स्पष्ट और सीधा अर्थ यह है कि ये घटनाएं वीर कवि ने अपने इस काव्य को एक महाकाव्य के सभी लक्षणों से सुसमृद्ध करने की दृष्टि से अपनी कल्पनाशक्ति से आविष्कृत की हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के सम्यक् पर्यवेक्षण से यह निर्विवाद रूप से सिद्ध होता है कि जिस समय जम्बूकुमार युवा हुए उससे अनेक वर्षों पहले ही मगध-सम्राट् श्रेणिक का देहावसान हो चुका था। महाराज श्रेणिक की मृत्यु के कुछ ही दिन अनन्तर कूणिक ने मगध की राजधानी राजगृह नगर से हटा कर चम्पा नगरी में स्थापित कर दी थी। ऐसी दशा में जम्बूकुमार द्वारा श्रेणिक के पट्टहस्ती को वश में करना, श्रेणिक की राज्यसभा में गगनगति नामक विद्याधर का प्राना, विद्याधर मृगांक द्वारा अपनी पुत्री का महाराज श्रेणिक के साथ पाणिग्रहण कराने का निश्चय करना, जम्बूकुमार का गगनगति के साथ विमान में बैठकर रत्नचूल से युद्ध करने हेतु प्रस्थान तथा महाराज श्रेणिक का सेना सहित जम्बू की सहायतार्थ केरल की ओर प्रयाण करना, युद्ध में जम्बूकुमार की विजय, मृगांक द्वारा अपनी पुत्री का थेगिक के साथ विवाह करना, जम्बूकुमार के साथ महाराज श्रेणिक का राजगृह नगर में प्रवेश करने से पूर्व उपवन में सुधर्मास्वामी के दर्शन कर उन्हें वन्दन-नमन करना और जम्बूस्वामी के अभिनिष्क्रमण के समय महाराज श्रेणिक द्वारा जम्बूकुमार को पालकी में बैठाकर उनके साथ-साथ उपवन में आर्य सुधर्मा के पास जाना आदि श्रेणिक के सम्बन्ध में वीर कवि द्वारा अपने इस महाकाव्य में दिया गया सभी विवरण कवि की कल्पनामात्र है। । प्रारिमकहाए अहियं महुकीला करि-नरिंदपत्थारणं ।
संगामो वित्तमिरणं जं दिळं तं खमंतु महु गुरुणो ।।१।। कव्वंगरससमिद्ध चितंतारणं कईण सव्वं पि । वित्तमहवा न वित्तं सच्चरिए धड़इ जुत्तमुत्त जं ।।२।।
[वही, संधि ८-१] ,
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