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विधुचोर को प्रतिबोष] केवलिकाल : मार्य जम्बू
२४३ प्राप्त करने के पश्चात् ही दीक्षित होने का निश्चय किया। तदनुसार वे अपनी माता के पास गये और अपनी प्रान्तरिक इच्छा उनके समक्ष प्रकट की। शोकाकुल हो माता-पिता ने उन्हें समझाने का पूरा प्रयास किया पर व्यर्थ । जम्बूकुमार को उनके दीक्षित होने के दृढ़ निश्चय से किंचितमात्र भी विचलित न होते देख अहंदास ने वाद्धिदत्त आदि चारों श्रेष्ठियों के पास जिनकी कि पुत्रियों के साथ जंबूकुमार का विवाह होना निश्चित हो चुका था- संदेश भेजकर उन्हें जम्बूकुमार के दीक्षित होने के दृढ़ निश्चय से अवगत कराया। उन चारों श्रेष्ठियों ने अपनी पुत्रियों को जम्बूकुमार के दीक्षित होने का निश्चय सुनाते हुए उन्हें अन्य किसी वर से विवाह करने का सुझाव दिया। चारों कन्यानों ने अपने-अपने माता-पिता को कहा कि वे अन्तर्मन से जम्बूकुमार को अपना पति चुन चुकी हैं प्रतः जम्बूकुमार के साथ ही उनका विवाह कर दिया जाय । यदि वे विवाहो. परान्त अपने पति को भोग-मार्ग की प्रोर प्राकर्षित कर सकी तो ठीक, अन्यथा वे भी उनके साथ-साथ दीक्षित हो जाएंगी।
अन्ततोगत्वा जम्बूकुमार ने अहंदास और जिनमती के अनन्य अनुरोष से इस शर्त पर उन चारों कन्याओं के साथ विवाह करना स्वीकार कर लिया कि विवाहोपरान्त उन्हें दीक्षित होने से रोका नहीं जायगा। . ... बड़ी धूमधाम और समारोहपूर्वक जम्बूकुमार का पद्मश्री प्रादि चार कन्याओं के साथ विवाह सम्पन्न हुआ।
विवाहोपरान्त पद्मश्री प्रादि नववधुएं अपने पति जम्बूकुमार को विविध उपायों, युक्तियों, दृष्टान्तों आदि से भोगमार्ग की भोर प्राकर्षित करने का और जम्बूकुमार अपनी पत्नियों को विषयभोगों की दुःखान्तता और भवभ्रमण की विभीषिका के विषय में समझाने का प्रयास करने लगे। रम्भा तुल्य चारों नववधनों ने संमोहक विविध हाव-भावों एवं चेष्टानों से जम्वृकुमार के मन में. कामाग्नि प्रदीप्त करने का पूर्णरूपेण प्रयास किया किन्तु जम्बूकुमार निस्तरंग अथाह पाथोधि की तरह शान्त तथा निश्चल बने रहें।
जिस समय जम्बूकुमार और उनकी चारों पत्नियों में परस्पर वार्तालाप हो रहा था, उस समय विधुच्चर नामक एक चोर महहास के घर में चोरो करने के लिये घुसा। जम्बूकुमार के घर में धनागारों को देखते समय विद्यच्चर की दृष्टि बड़े ही आकर्षक ढंग से सजे हुए जम्बूकुमार के शयनागार पर पड़ी । उसके मन में कुतुहल जागृत हुमा और उसने निश्चय किया कि रत्नादि बहुमूल्य वस्तुनों को तो यहां से लौटते समय ही ले लंगा, पहले जम्बूकुमार और उनकी नववधुनों का वार्तालाप ही सुन लूं । यह विचार कर विणुचर जम्बूकुमार के शयनागार के एक बन्द द्वार से अपना कान सटाकर खड़ा हो गया। सुहागराषि (प्रथम मिलन की रात्रि) के समय बहुमार के मुख से भोगों के प्रति निरासक्ति प्रकट करने वाली बातें सुनकर रास-दिन कामलता येवा विवाद
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