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द्वा० का ह्रास एवं विच्छेद ]
पूर्वनाम
१. उत्पाद पूर्व
२. प्राणी
३. वीर्यप्रवाद
४. श्रस्तिनास्ति प्रवाद
५. ज्ञानप्रवाद
६. सत्यप्रवाद
७. आत्मप्रवाद
८. कर्मप्रवाद
६. प्रत्याख्यान पद
१०. विद्यानुवाद ११. अवघ्य
१२. प्रारणायु १३. क्रियाविशाल
१४. लोक बिन्दुसार
केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा
पूर्वो की पदसंख्या
श्वेताम्बर परम्परानुसार
एक करोड़ पद
छियानवे लाख
सत्तर लाख
साठ लाख
एक कम एक करोड़
एक करोड़ ६ पद
छब्बीस करोड़ पद
१ करोड़ अस्सी हजार
८४ लाख पद
१ करोड़ १० लाख पद
२६ करोड़ पद
१ करोड ५६ लाख पद
8 करोड़ पद
साढ़े बारह करोड़ पद
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दिगम्बर परम्परानुसार
एक करोड़ पद
'छियानवे लाख
सत्तर लाख
साठ लाख
एक कम एक करोड़ पद
एक करोड़ छः पद
छब्बीस करोड़ पद
१ करोड़ ८० लाख पद
८४ लाख पद
१ करोड १० लाख पद
२६ करोड़ पद '
१३ करोड़ पदर
६ करोड़ पद
साढ़े बारह करोड़ पद
उपर्युल्लिखित तालिकाओं में अंकित दृष्टिवाद और चतुर्दश पूर्वो की पदसंख्या से यह स्पष्टतः प्रकट होता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के श्रागमों एवं श्रागम सम्बन्धी प्रामाणिक ग्रन्थों में दृष्टिवाद की पदसंख्या संख्यात मानी गई है । शीलांकाचार्य ने सूत्रकृतांग की टीका में पूर्व को अनन्तार्थ युक्त बताते हुए लिखा है :
"पूर्व अनन्त अर्थ वाला होता है और उसमें वीर्य का प्रतिपादन किया जाता है अतः उसकी अनन्तार्थता समझनी चाहिए ।"
अपने इस कथन की पुष्टि में उन्होंने दो गाथाएं प्रस्तुत करते हुए लिखा है - " समस्त नदियों के बालुकरणों की गणना की जाय अथवा सभी समुद्रों के पानी को हथेली में एकत्रित कर उसके जलकरणों की गणना की जाय तो उन बालुकरणों तथा जलकरणों की संख्या से भी अधिक अर्थ एक पूर्व का होगा ।
दिगम्बर परम्परा में ११ वें पूर्व का नाम कल्याण है ।
* श्वेताम्बर परम्परानुसार पूर्वो की उपरोक्त पदसंख्या समवायांग एवं नन्दी-वृत्ति के प्राधार पर तथा दिगम्बर परम्परानुसार पदसंख्या घवला, जयधवला, गोम्मटसार एवं अंग पणति के अनुसार दी गई है ।
[सम्पादक ]
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