________________
जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग
श्वेताम्बर परम्परानुसार द्वादशांगी को पदसंख्या अंग का नाम
समवायांग के
नंदीसूत्र सम० वृत्ति नंदी वृत्ति
अनुसार १. प्राचारांग
१८००० २. सूत्रकृतांग
३६००० ३. स्थानांग
७२००० ४. समवायांग
१४४००० ५. व्याख्याप्राप्ति
८४००० २८८००० ८४००० २८८००० ६. माताधर्मकया संख्यात हजार संख्यात हजार ५७६००० ५७६००० ७. उपासकदशा
११५२००० ११५२००० ८: प्रतकद्दशा
२३०४००० २३०४००० ६. अनुतरोपपातिकदशा
४६०८००० ४६०८००० १०. प्रश्नण्याकरण
६२१६००० ६२१६००० ११. विपाकसूत्र
१८४३२००० १८४३२००० १२. दृष्टिवाद
दिगम्बर परम्परानुसार' द्वादशांगी की पब, श्लोक एवं प्रक्षर-संख्या ___ अंग का नाम पद संख्या श्लोक संख्या
अक्षर संख्या १. प्राचारांग
१८०००
६१६५६२३११८७००० २६६२६६५४१९८४००० २. सूत्रकृत
३६००० १८३६१८४६३७४००० ५८८५३९०८३६६८००० ३. स्थानांग
४२००० २१४५७१५४१०३००० ६८६६२८६३१२९६००० ४. समवायांग १६४००० ८३७८५०७७६२६००० २६८११२२४६३६३२००० ५. विपाकप्रज्ञप्ति २२८००० ११६४८१६६३७०२००० ३७२७४१४१९८४६४००० ६. शातृधर्मकथांग ५५६००० २८४०५१८४६५५४००० ६८६६५६१८५७२८००० ७. उपासकाध्ययन ११७००० ५६७७३५००७१५५००० १६१२७५२०२२८६६०००० ८. अंतकृद्दशांग २३२८०००। ११८६३३६३६८८५२००० ३८०५८८६०७६३२३४०००, ९. अनुत्तरोपत्पाद ६२२४४००० ४७२२६१७४४१४६०००। १५११२३७५८११६६७००० १०. प्रश्नव्याकरण ६३१६००० ४७५६४०११३३८६४००० १५२३००८३६२८४६०८००० ११. विपाकसूत्रांग १८४००००० १४००२७७०३५६००००० ३००८०८.८६५१३६२००००० १२. दृष्टिवादांग १०८६८५६००५ ५५५२५८०१८७३६४२७१०७ १७७६८२५६५६६६६१६६७४४०
मंगपणत्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org