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जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग [ परिवार को प्रतिबोध
से
पूछा - "चिरंजीव ! अपने आत्मीयों के भविष्य और अन्य समस्त परिस्थितियों पर गम्भीरतापूर्वक चिंतन तथा नववधुओं के साथ विचार विनिमय के पश्चात् तुम अवश्य ही किसी न किसी निश्चय पर पहुंचे होंगे ?"
जम्बूकुमार ने कहा - "हां, पितृदेव ! आपकी आठों कुलवधुनों और मैंने श्रात्मोद्धार हेतु यही दृढ़ निश्चय किया है कि आपकी अनुमति पाकर हम प्रातः काल श्रमरण धर्म की दीक्षा ग्रहरण कर लेंगे । हमें अब केवल आपकी अनुमति की ही आवश्यकता है। कृपा कर अब बिना विलंब के श्राप हमें दीक्षित होने की अनुमति प्रदान कर दीजिये ।"
तदनन्तर मोहग्रस्त श्रेष्ठि- दम्पतियों को मोहनिद्रा से जागृत करते हुए जम्बूकुमार ने शान्त, मधुर पर दृढ़ स्वर में सम्बोधित किया- 'मातृपितृदेवो ! जिस प्रकार लवणसमुद्र अपार क्षारयुक्त जलराशियों से पूर्ण रूपेण भरा हुआ है ठीक उसी प्रकार भवसागर शारीरिक एवं मानसिक असंख्य दुःखों से भरा हुआ है । वस्तुतः इस संसार में सुख नाम की कोई वस्तु नहीं है । दुःख में सुख के विभ्रम, एवं दुःख में सुख की मिथ्या कल्पना द्वारा दुःख मूलक सुखाभास को ही विषयासक्त प्राणियों ने सुख समझ रखा है । शहद से सिक्त तलवार की तीक्ष्ण धार को जिह्वा से चाटने पर जिस प्रकार शहद के क्षणिक एवं तुच्छ सुख के साथ जिह्वा कटने की असह्य व्यथा संपृक्त है - जुड़ी हुई है, शतप्रतिशत वही स्थिति इन सांसारिक विषयोपभोगजन्य सुखों पर घटित होती है । इसके अतिरिक्त गर्भवास के घोर दुःख की कल्पना तक नहीं की जा सकती । वह नारकीय दुःखों से भी अत्यधिक दुखद और भट्टी की तीव्रतम ज्वालाओं से भी अधिक दाहक है । इस संसार में एकान्ततः दुःख ही दुःख है, सुख नाम मात्र को भी नहीं है। यदि आपके अन्तर्मन में वास्तविकं सुख प्राप्ति की अभिलाषा है तो आप सब प्रातःकाल होते ही मेरे साथ मुक्तिपथ के पथिक बन जाइये ।”
कितना सजीव एवं सच्चा चित्ररण था संसार का ? जम्बूकुमार के इन नितान्त विरक्तिपूर्ण वचनों में अद्भुत चमत्कार था । श्रेष्ठिदम्पतियों के अन्तःकरण में प्रविष्ट हो इन वाक्यों ने उनकी अन्तश्चेतना को जागृत कर उनके अन्तों को उन्मीलित कर दिया। उन्हें अपने अन्तस्तल में अद्भुत प्रालोक का अनुभव हुआ । संसार के वास्तविक स्वरूप को समझते ही अठारहों भव्य जीवों ने दीक्षित होने का निश्चय कर लिया ।
सहमा सबके मुख से एक ही स्वर प्रतिध्वनित हुआ 'वत्स ! तुमने हमारी मोहनिद्रा को भगा दिया है। अब हम तुम्हारे साथ ही प्रव्रजित हो आत्मकल्याण करेंगे ।"
जम्बूकुमार द्वारा माता-पिता श्रादि ५२७ व्यक्तियों के साथ दीक्षा
प्रातःकाल होते ही सारे राजगृह नगर में यह समाचार विद्युत् वेग की तरह घर-घर पहुंच गया कि जम्बूकुमार कुबेरोपम अपार वैभव का परित्याग कर
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