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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [के• काल वि. मान्यताएं प्रहर दिन व्यतीत होने पर जम्बू स्वामी को केवलज्ञान हुप्रा ।' तत्पश्चात् जम्बू स्वामी १८ वर्ष तक केवली रूप से विचरण करते रहे और अन्त में विपुलाचन के शिखर पर पाठों कर्मों का क्षय कर सिद्ध हुए। इस प्रकार इन दोनों विद्वानों ने गौतम और सुधर्मा इन दोनों का मिलाकर १८ वर्ष केवल्य काल, जम्बू स्वामी का कैवल्य काल केवल १८ वर्ष और इन तीनों का मिलाकर कुल ३६ वर्ष का ही कैवल्यकाल माना है, जो आज तक उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री एवं श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों परम्पराओं द्वारा स्वीकृत कालक्रम से बिल्कुल विपरीत पड़ता है, प्रतः प्रामाणिक न होते हुए भी विचारणीय अवश्य है। ..
इस प्रकार श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परामों द्वारा मान्य उपरिवरिणत अधिकांश ऐतिहासिक तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि जम्बस्वामी का जन्म वीर-निर्वाण से १६ वर्ष पूर्व, दीक्षा वीर निर्वाण सं० १ में, केवलज्ञान की प्राप्ति वीर नि० सं० २० में और निर्वाण वीर नि० सं० ६४ में हुआ।
अन्य मान्यता भेद आर्य जम्ब स्वामी को श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परामों में अन्तिम केवली माना गया है । जम्बू स्वामी के अपूर्व त्याग, उत्कटं वैराग्य और कठोर साधना के प्रति अगाध श्रद्धा अभिव्यक्त करते हुए दोनों परम्पराओं के प्राचीन तथा अर्वाचीन अनेक विद्वानों ने समय-समय पर इस महाश्रमण के जीवन पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं।
यद्यपि दोनों परम्परामों के विद्वानों द्वारा जम्बू स्वामी के जीवनवृत्त पर लिखे गये ग्रन्थों में कतिपय घटनाओं, दृष्टान्तों और नामादि का साधारण वैविध्य है, तथापि जम्बस्वामी के जीवन की महत्वपूर्ण एवं मूल घटनाओं के सम्बन्ध में दोनों परम्पराओं के विद्वानों का परस्पर पर्याप्त मतैक्य पाया जाता है। श्वेताम्बर परम्परा में जम्ब स्वामी के पिता का नाम ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी बताया गया है, जब कि दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में पिता का नाम अहहास और माता का नाम जिनमती उल्लिखित है। श्वेताम्बर मान्यता के ग्रन्थों में जम्ब कुमार का पाठ श्रेष्ठि-कन्याओं के साथ पाणिग्रहरण होना बताया गया है; जब कि दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में ४ श्रेष्ठि-कन्यानों के साथ । श्वेताम्बर परम्परा की मान्यता के अनुसार प्रभव चोर अपने ५०० १ (क) तवानि यामार्थव्यवधानवती प्रभोः ।
उत्पन्न केवलज्ञानं जम्बूस्वामिमुनेस्तदा ।।११२।। [जम्बू च० (राजमल्ल), सर्ग १२] (ख) जम्बूस्वामिचरिउ, १०:२४, पृ० २१५ २ (क) कुर्वन् धर्मोपदेशं स केवलज्ञानलोचनः ।
वर्षाष्टादशपर्यन्तं स्थितस्तत्र जिनाधिपः ।।१२०।।
ततो जगाम निर्वाणं केवली विपुलाचलात् । [जम्बूस्वामिचरितम् (राजमल्ल)] (ख) जम्बूसामिचरिउ (वोर विरचित), १०:२४, पृ० २१५
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