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मार्य जम्बू का निर्वाण] केवलिकाल : प्रार्य जम्बू
२३१ । ईसा पूर्व ४६३ में प्रार्य जम्बू ने ८० वर्ष की आयु पूर्ण कर अक्षय प्रव्याबाप निर्वाणपद प्राप्त किया।'
मुनिवर गुणपाल (विक्रम की ६ वीं शताब्दी) ने जम्बूचरियं में लिखा है कि जम्बूस्वामी ने अपनी प्रायु अल्प समझकर एक मास के पादपोपगमन संपारे से शैलेशी दशा प्राप्त की और अपूर्वकरण द्वारा कर्मबन्धन से मुक्त हो शरीर त्याग एक समय की अविग्रह गति से निर्वाण प्राप्त किया।
मुनिवर गुणपाल ने अपने इस अभिमत की पुष्टि में किसी प्राचीन प्राचार्य द्वारा रचित किसी अन्य की पांच गाथाएं प्रस्तुत करते हुए लिखा है :भणियं च पुव्वसत्येसु - .
भयवं पि जंबुरणामो, बहूणि वासाणि विहरिऊरण जिणे। भत्तं पच्चक्खायइ, वालाहगसेलसिहरेसु ॥'
बश बोलों का विच्छेद जम्बू स्वामी के निर्वाण के पश्चात् जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र से निम्नलिखित १० वस्तुएं विलुप्त हो गई :
मण परमोहि पुलाए, आहार खवग उवसमे कप्पे ।
संजमतिग केवल सिज्झरणा य जम्बुम्मि वुच्छिण्णा ॥ अर्थात् - (१) मनःपर्यव ज्ञान, (२) परमावधि ज्ञान, (३) पुलाक लब्धि, (४) आहारक शरीर, (५) क्षपक श्रेरिण, (६) उपशम श्रेणि, (७) जिनकल्प, (८) तीन प्रकार के चारित्र, अर्थात् -परिहार-विशुद्धि, सूक्ष्म सम्पराय और यथाख्यात चारित्र, (९) केवलज्ञान और (१०) मुक्तिगमन -
, बीमो जंबूत्ति, श्रीसुधर्मस्वामिपट्टे द्वितीयः श्री जम्बू स्वामी। स च नवनवतिकोटिसंयुक्ता
प्रष्टो कन्यकाः परित्यज्य श्रीसुधर्मस्वाम्यन्तिके प्रवजितः । स च षोडश वर्षारिण गृहस्थपर्याये, विंशतिवर्षारिण व्रतपर्याये, चतुश्चत्वारिंशद्वर्षाणि युगप्रधानपर्याये चेति सर्वायुरशीति वर्षाणि परिपाल्य श्री वीरात् चतुःषष्टि वर्षे सिखः ।
.[तपागच्छ पट्टावली, स्वोपज्ञ वृत्ति, पन्यास श्री कल्याणविजयजी
द्वारा सम्पादित, पृष्ठ ५] २ भयवं पि....... “संपत्तो विमलुत्तुंगगयणंगणसण्णिहं तं वलाहगसेलसिहरं ति । तमो भगवया नाऊण प्रत्तणो थोवाउयत्तणं कयं सम्व भत्तपच्चक्खाणं पायवोवगमणाइयं जहाविहिं जहाकरणीयं । ठियो य तत्थ सिलायलोवगो मासमेगं पामोवगमणेण ।........ सेलेसि संपत्तो, विमुक्को अउव्वकरणेण एक्कसमएणेव विमुक्कवुन्दी नेम्वाणपुरवरं संपत्तो ति।"
[जंदुचरियं, (गुणपाल) पृ० १९६-९७] ' [वही ]
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