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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [जन्म, नि• काल निर्णय श्रेणिक और भगवान महावीर के बीच यह प्रश्नोत्तर की घटना चम्पा नगरी में हुए भगवान् की केवलीचर्या के १३ वें चातुर्मास से पूर्व की घटना है। शास्त्रीय उल्लेख के अनुसार चम्पा नगरी में हुए इस चातुर्मास से पहले कूरिणक मगध का शासक बन चुका था और मगध की राजधानी राजगृह से हटाकर वह चम्पा में ले आया था।
___ इस दृष्टि से विचार करने पर जम्बूकुमार का जन्म भगवान महावीर की केवलीचर्या के १४ वें वर्ष में होना अनुमान किया जा सकता है और इस प्रकार भगवान महावीर के निर्वाण के समय में जम्बू कुमार की आयु १६ वर्ष की होना प्रमाणित हो जाता है।
___ जम्बू कुमार के विवाह की घटना का वर्णन करते हुए प्राचार्य हेमचन्द्र ने परिशिष्ट पर्व में लिखा है :
क्रमेण प्रतिपेदे च, वयो प्रथममार्षभिः । अभूत्पाणिग्रहाहश्च, पित्रोराशालतातरुः ।। ७४ ।।
[परिशिष्ट पर्व, सर्ग २] विवाह योग्य वय सोलह वर्ष से कम की नहीं हो सकती। ऐसी दशा में प्राचार्य हेमचन्द्र के अनुसार जम्बूकुमार का विवाह १६ वर्ष की अवस्था में हुमा और विवाह होने के पश्चात् दूसरे दिन ही उन्होंने आर्य सुधर्मा के पास दीक्षा ग्रहण कर ली।
इसके पश्चात् प्राचार्य हेमचन्द्र स्पष्ट रूप से 'परिशिष्ट पर्व' में यह उल्लेख करते हैं कि - भगवान महावीर के निर्वाण से ६४ वर्ष पश्चात् जम्बूकुमार ने निर्वाण प्राप्त किया।
. इन सब तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि आर्य जम्बकूमार ने १६ वर्ष की वय में दीक्षा ग्रहण की और ६४ वर्ष तक श्रमणधर्म का परिपालन करने के पश्चात् ८० वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त किया।
___ आचार्य हेमचन्द्र द्वारा परिशिष्ट पर्व में उल्लिखित उपरोक्त तथ्यों से यह भलीभांति सिद्ध हो जाता है कि प्रार्य जम्बूकुमार ने भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् १६ वर्ष की वय में दीक्षा ग्रहण की। ऐसी दशा में आर्य सुधर्मा स्वामी का जम्बू श्रमण सहित भगवान् महावीर की सेवा में पहुंचने का जो उल्लेख किया गया है, वह संगत प्रतीत नहीं होता।
भगवान् महावीर का निर्वाण जम्बूकुमार की दीक्षा से कुछ मास पूर्व हो चुका था, इस प्रकार के उल्लेख श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परामों के प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। 'श्रीवीरमोक्षदिवसादपि हायनानि, चत्वारि पष्टिमपि च व्यतिगम्ये जम्बूः । कात्यायनं प्रभवमात्मपदे निवेश्य, कमंमयेण पदमम्ययमाससाद ॥६॥
परिशिष्ट पर्व, सर्ग.४]
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