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अंगारकारक का दृष्टांत ]
केवलिकाल : मायं जम्बू
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एवं भोगोपभोग वापी, कूप, तड़ागादि के जल के समान हैं। हमारा जीव चक्रवर्ती देव, देवेन्द्रों के दिव्य भोगों से भी तृप्त नहीं हुआ तो अब उसे वापी के कीचड़ के समान तुच्छ मानवी भोगों से तृप्त करने की इच्छा करना मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं ।"
अपनी नव विवाहिता पत्नियों द्वारा भोग मार्ग की ओर प्राकर्षित करने हेतु प्रस्तुत किये गए मार्मिक दृष्टांतों एवं तर्कों के उत्तर में जम्बूकुमार ने हृदयग्राही दृष्टांत सुनाते हुए प्रकाट्य एवं प्रबल युक्तियों से संसार की निस्सारता, भोगों की क्षणभंगुरता और भवाटवी की भयावहता का ऐसा मार्मिक चित्ररण किया कि जम्बूकुमार को भोग-मार्ग की ओर आकर्षित करने का प्रयास छोड़ कर समुद्रश्री प्रादि प्राठों कुसुम- कोमलांगिनियां कुलिश कठोर योग-मार्ग पर चलने के लिये उदयत हो गई । जम्बूकुमार के अन्तर्मन के सच्चे उद्गारों को सुनकर उन आठों ही रमणियों की मोहनिद्रा भंग हो गई । उन प्राठों रमणी-रत्नों ने श्रद्धापूर्वक मस्तक झुकांते हुए जम्बूकुमार से निवेदन किया- "आर्य ! आपकी कृपा से हमें सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो गई है । हमारे मन में अब सांसारिक भोगोपभोगों एवं सुखों के प्रति किंचितमात्र भी आकर्षण नहीं रह गया है। हमें यह संसार वस्तुतः भीषरण ज्वालामालानों से प्राकुल एक प्रति विशाल भट्टी के समान प्रतीत हो रहा है । हम आपके पदचिह्नों का अनुसरण करती हुईं प्रपने समस्त कर्म-समूहों को ध्वस्त कर शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए लालायित हैं । हम अच्छी तरह समझ चुकी हैं कि प्राप जिस पथ के पथिक बनने जा रहे हैं, वही पथ वस्तुतः हमारे लिए श्रेयस्कर है । अज्ञानवश हमने ग्रापको भोग-मार्ग की ओर आकृष्ट करने के जो प्रयास किये हैं उनके लिए हम आपसे क्षमा प्रार्थना करती हैं। हम
आपके साथ ही प्रव्रजित होना चाहती हैं अतः आप हमें अपने साथ ही प्रव्रजित होने की प्राज्ञा प्रदान कर पाणिग्रहरण की लौकिकी क्रिया को सही मायनों में सार्थक कीजिए ।"
जम्बूकुमार की अनुमति प्राप्त हो जाने के पश्चात् समुद्रश्री प्रादि प्राठों रमणियों ने अपने-अपने माता-पिता के पास अपने निश्चय की सूचना करवा दी कि प्रातः काल होने पर वे भी अपने पति के साथ प्रव्रजित हो जायेंगी ।
अपनी पुत्रियों के प्रव्रजित होने की बात सुनते ही ग्राठों श्रेष्ठि-दम्पति तत्काल जम्बूकुमार के भवन पर प्राये । उस समय तीन प्रहर रात्रि बीत चुकी थी, केवल अन्तिम प्रहर अवशिष्ट था ।
परिवार को प्रतिबोध
प्रभवादि दस्युमण्डल और अपनी ग्राठों पत्नियों को प्रतिबोध देने के पश्चात् जम्बूकुमार प्रतिदिन के नियमानुसार अपने माता-पिता के पास गये । उन्होंने अपने माता-पिता और उनके पास बैठे सास- श्वसुरों को विनय पूर्वक प्रणाम किया । प्राशीर्वचन के पश्चात् श्रेष्ठि ऋषभदत्त ने स्नेहसिक्त स्वर में जम्बूकुमार
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