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वानर का कथानक] केवलिकाल : प्राय जम्बू
वानर का कथानक किसी सर्वकामप्रदायी द्रह के तट पर स्थित एक विशाल वृक्ष पर वानर और वानरी का युगल (एक शाखा से दूसरी शाखा पर कूद-फांद करते हुए) क्रीड़ा कर रहा था । वामर किसी तरह फाल चूक गया और उस द्रह में जा गिरा | उस दिव्य द्रह के जल के प्रभाव से वानर तत्काल अति सुन्दर युवा मनुष्य बन गया। इस अद्भुत रूप-परिवर्तन को देख कर वानरी ने भी द्रह में छलांग लगाई और वह भी तत्काल अति सुन्दर रूप- लावण्यवती मानवकन्या बन गई। वे दोनों एक दूसरे के प्रति कमनीय मानव स्वरूप को देख कर अतीव प्रमुदित हुए।
युवा पुरुष के रूप में परिवर्तित हुए वानर ने अपनी पत्नी से कहा - "सुमुखि ! हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि इस द्रह में कूदने के कारण हमें मनोहारी मानवतनु मिल गये । अव हम इस वृक्ष पर चढ़ कर एक बार पुनः इस द्रह में कूदें । अब की बार हम निश्चित रूप से देव तथा देवी बन जायेंगे और सहस्रों वर्षों तक दिव्य सुखों का उपभोग करेंगे।''
मानवी देहधारिणी वानरी ने कहा- "प्रियं! मानवदेह हमें मिल गई है। इसी में संतोष करके हमें मानवोचित सुखों का उपभोग करना चाहिये। संशयास्पद देवत्व की प्राप्ति के प्रयास में कहीं हम अपना यह मानवतन भी न खो बैठें।"
अपनी प्रिया द्वारा बहुत कुछ समझाये जाने के उपरान्त भी मानवतनधारी वह वानर वृक्ष पर चढ़ कर द्रह में कूद गया। यह देख कर उसे बड़ा दुःख हुमा कि वह पुनः वानर बन गया है । द्रह से निकल कर वानर अनेक बार उस वृक्ष पर चढ़ा और द्रह में कूदा पर सब निष्फल, वह तो वानर ही बना रहा । अपनी असंतोषी वृत्ति पर पश्चात्ताप करता हुआ वह रोने लगा।
दूसरी ओर वनक्रीडार्थ वहां आये हुए एक महाराजा ने जब उस अनुपम सुन्दरी को देखा तो वह उसे अपने राजमहलों में ले गया और उसने उसे अपनी पट्टमहिषी बना दिया। वह एक बड़े नरपति की अग्रमहिषी के रूप में राजकीय विविध सुखों का उपभोग करने लगी।
उधर उस वानर को एक मदारी पकड़ कर ले गया और उसे अनेक प्रकार की वानर-कलाएं सिखा कर ग्रामों व नगरों में उसकी कलाओं का प्रदर्शन करने लगा। एक दिन वह मदारी उस वानर को ले कर उसी राजा के यहां पहुंचा जहां पर उस वानर की महिला रूपधारिणी वानरी पट्ट महिषी के रूप में अनेक प्रकार के सुखों का उपभोग कर रही थी। मदारी ने राजा, रानी और रनिवास की रमरिगयों के समक्ष वानर के खेल दिखाने का उपक्रम किया पर वह वानर राजा के अर्द्ध सिंहासन पर बैठी हुई अपनी पूर्वपत्नी को देख कर रोने लगा। मदारी द्वारा बहतेरा ताड़न-तर्जन किये जाने पर भी वानर ने किसी प्रकार का नाटय नहीं दिखाया, वह तो राजमहिषी की ओर देख-देख कर रोता ही रहा ।
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