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प्रवजित होने का प्रस्ताव] केवलिकाल : आर्य जम्बू
२११ रत्नो से विपुल अर्थोपार्जन किया और वह दीर्घ काल तक सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करता रहा।
_ विशेष परिज्ञा वाले श्रेष्ठिपुत्र के दृष्टांत की दार्टान्तिक रूप में व्याख्या करते हुए जम्बूकुमार ने कहा - "जिस प्रकार उस श्रेष्ठिपुत्र ने सारभूत वस्तु को ग्रहण कर लम्बे समय तक सुखोपभोग किया, उसी प्रकार मैं भी सुधर्मा स्वामी के उपदेश में से सारभूत अमूल्य वस्तु -प्रव्रज्या को ग्रहण कर अनन्त, शाश्वत सुख स्वरूप परमपद मोक्ष को प्राप्त करना चाहता है। अतः आप मुझे प्रवजित होने की आज्ञा प्रदान कर परमपद प्राप्त करने के मेरे लक्ष्य में सहायक बनिये।"
जम्बूकुमार द्वारा सहज भाव से प्रकट किये गये इन उद्गारों एवं अन्तस्तल से प्रस्तुत की गई तथ्यपूर्ण युक्तियों से श्रेष्ठिदम्पति को विश्वास हो गया कि जम्बू के अंतःकरण में प्रवजित हो, परमपद प्राप्त करने की उत्कट एवं अमिट अभिलाषा उत्पन्न हो चुकी है, वह अब किसी भी दशा में गृहस्थाश्रम में रहने वाला नहीं है। फिर भी उन्होंने अत्यधिक स्नेह के कारण जम्बुकुमार को और कुछ दिन गृहवास में रहने का अनुरोध करते हए अाग्रहपूर्ण स्वर में कहा"पुत्र ! इस बार तो तुम प्रवजित होने का विचार त्याग दो। हां, जब विभिन्न क्षेत्रों में विचरण करते हुए सुधर्मा स्वामी पुनः यहां पधारें तब तुम उनके पास दीक्षित हो जाना।"
जम्बुकुमार ने अपने लक्ष्य से किंचित्मात्र भी विचलित हुए बिना विविध युक्तियों से धर्म की महत्ता एवं दुर्लभता सिद्ध करने वाली अपनी बात को प्रारम्भ रखते हुए कहा - "तात-मात ! यदि मैं अभी प्रवजित हो जाऊं तो निश्चित रूपेण अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सिद्ध हो सकंगा। काल का क्या भरोसा ? अतः मेरे हित को ध्यान में रखते हुए आप मुझे अभी ही प्रवजित होने की आज्ञा प्रदान कर दीजिए।" ___अपने प्राणाधिक प्रिय पुत्र के भावी विछोह को टालने का एक और प्रयास करते हुए श्रेष्ठिवर ऋषभदत्त ने पुनः बड़े दुलार भरे स्वर में कहा - "वत्स? तुम्हारे पास सभी प्रकार के सुखोपभोग का अनन्यतम साधन-विपूल वैभव विद्यमान है। मानव-मन जिन सुखों के उपभोग के लिए सदा लालायित रहता है, जिन सुखोपभोगों को प्राप्त करने में अधिकांश मानव जीवन भर अहर्निश अथक परिश्रम करते रहने के उपरान्त भी सफल नहीं होते, वे सब सुखोपभोग तुम्हें तुम्हारे प्रबल पुण्य के प्रताप से सहज ही प्राप्त हैं। अतः यथेप्सित विषय - सुखों एवं विविध भोगोपभोगों का जी भर आनन्द लूटने के पश्चात् तुम दीक्षित हो जाना।"
इस पर जम्बुकुमार ने अपने माता-पिता को विषय-लोलुपता की भयावहता बताते हुए एक बन्दर का दृष्टांत सुनाया जो विषयासक्ति के कारण शिलाजीत से चिपक कर मर गया था। विषयासक्ति के कारण हुई बन्दर की मृत्यु के दृष्टांत को
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