________________
प्रव्रजित होने का प्रस्ताव ]
केवलिकाल : प्रयं जम्बू
२१३
श्रेष्ठिवर ऋषभदत्त ने तत्काल विश्वस्त संदेशवाहकों के साथ उन आठों सार्थवाहों के पास संदेश भेजा । उसमें यह स्पष्ट कहला दिया कि विवाह हो जाने के पश्चात् जम्बुकुमार प्रव्रजित हो जायेंगे, अतः सभी बातों पर सुचारु रूप से विचार कर शीघ्र उत्तर दिया जाय ।
संदेश में जम्बुकुमार के दीक्षित होने की बात सुन कर उन सभी सार्थ वाहों के हृदय पर गहरा आघात पहुंचा। वे अपनी पत्नियों के साथ इस विषय में विचार करने लगे कि समुपस्थित समस्या का हल किस प्रकार किया जाय ।
आठों श्रेष्ठि-कन्यात्रों ने भी जम्बुकुमार के दीक्षित होने और अपने मातापिता के पास श्रेष्ठि ऋषभदत्त के यहां से प्राप्त संदेश की बात सुनी । समान निश्चय वाली उन सभी कन्याओं ने अपने माता-पिता से स्पष्ट शब्दों में कह दिया - " आपने हमें उन्हें वाग्दान में दे दिया है । अब धर्म से वे ही हमारे स्वामी हैं । वे जिस पथ का अवलम्बन करेंगे, चाहे वह कितना ही दुर्गम अथवा कण्टकाकीर्ण क्यों न हो, हमारे लिये भी वही प्रशस्त पथ होगा । प्राप और किसी बात का विचार नहीं करें ।"
कन्याओं के दृढ निश्चय को सुन कर उनके पिता सार्थवाहों ने ऋषभदत्त को विवाह की स्वीकृति का संदेश प्रेषित कर दिया। दोनों ओर विवाह की तैयारियां होने लगीं ।
जम्बू का विवाह
विवाह की मांगलिक वेला में अमूल्य भूल एवं अलंकारों से सुसज्जित हाथी की पीठ पर देव विमान के समान सुन्दर अम्बावारी में वरवेषधारी जम्बुकुमार आरूढ़ हुए। अपने समय के धनकुबेर श्रेष्ठिवर ऋषभदत्त के प्रारणाधिक प्रिय इकलौते पुत्र जम्बुकुमार की वर यात्रा को देखने राजगृह नगर के नर-नारियों के समूह के समूह सुन्दर परिधान पहने उमड़ पड़े । गवाक्षों से सुन्दरियां सुमन-वृष्टि करने लगीं । समस्त वातावरण को गुंजरित कर देने वाले विविध वाद्यवृन्दों की मधुर ध्वनि के साथ वर यात्रा मुख्य बाजारों से प्रागे बढ़ी । पूर्णचन्द्र जिस प्रकार तारिकाओं के समीप जाते हैं उसी प्रकार वरवेष में सजे परम कान्तिमान जम्बुकुमार कन्याओं के घर पहुंचे । मंगल आरतियों के साथ वर को वधुओं के घर में प्रवेश करवाया गया और सम्पूर्ण वैवाहिक विधि-विधान के साथ जम्बू कुमार का आठों वधुनों के साथ पाणिग्रहरण एक ही साथ करवाया गया । पाणिग्रहण सम्पन्न होने पर उन म्राठों सार्थवाहों ने अपने जामाता जम्बुकुमार को दहेज में भोगोपभोग योग्य वसनालंकारादि विपुलं सामग्रियों के साथ प्रचुर मात्रा में स्वर्ण मुद्राएं प्रदान कीं। तदनन्तर जम्बुकुमार अपनी ग्राठों वधुनों के साथ भवन की ओर लौटे । कुटुम्बियों और नागरिकों ने वधुनों सहित वर का हार्दिक अभिनन्दन किया । नव वधुत्रों के साथ अपने गृह में प्रवेश करते हुए जम्बुकुमार ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो वे अष्ट सिद्धियों को अपने साथ उस घर में लाये हों ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org