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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [प्रायं जम्बू के मा०-पि. अनुकूल करना चाहिये। उसी समय सुधर्मा स्वामी ने वह सारा वृत्तान्त सुनाया कि किस प्रकार ऋषभदत्त का छोटा भाई मरते समय 'पंचपरमेष्टि-नमस्कारमंत्र के प्रताप से जम्बूद्वीप का अधिपति अनाधृत देव बना। धारिणी ने अपने अन्तर में उठे प्रश्न का इसे उत्तर समझा।'
सुधर्मा स्वामी की देशना के अनन्तर ऋपभदत्त अपनी पत्नी धारिणी के साथ अपने घर लौट आया। धारिणी ने अनाधृतदेव के साथ अपने परिवार का अत्यन्त सन्निकट का सम्बन्ध होने के कारण उसकी आराधना प्रारम्भ की। धारिणी ने जम्बूद्वीपाधिपति देव के नाम पर १०८ प्राचाम्ल व्रत किये।
जैसाकि श्रमण भगवान् महावीर ने मगधपति श्रेणिक के प्रश्न के उत्तर में बताया था - उस दिन से ठीक सातवें दिन विद्युन्माली देव ब्रह्मलोक से च्यवन कर ऋषभदत्त की पत्नी धारिगणी के गर्भ में अवतरित हया। रात्रि के अन्तिम चरण में अर्द्ध-जागृतावस्था में सोई हुई धारिणी ने स्वप्न में मृगराजकिशोर एवं सुन्दर, सरस-सुगन्धित जम्बूफल आदि को देखा।' १ मुनिवर गुणपाल रचित जम्बूचरियं में - "भगवं । किं मम पुत्तो होही नव ति ?" इस
रूप में स्वयं धारिणी द्वारा सुधर्मा स्वामी के सम्मुख प्रश्न उपस्थित करने तथा जसमित्र द्वारा उत्तर देने का उल्लेख है । इसमें बताया गया है कि जसमित्र ने धारिणी से कहा - "अहो श्राविके ! श्रमण निग्रंथ जानते हुए भी इस प्रकार के सावध प्रश्नों का उत्तर नहीं देते। मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देता हूँ। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, प्राचार्य, उपाध्याय, साधु, बलदेव, वासुदेव तथा जम्बूद्वीप समुद्र आदि की चर्चा के पश्चात् यह प्रश्न किया गया है अतः निश्चित रूप से तुम महाभाग्यवान् पुत्र को जन्म दोगी। स्वप्न में जम्बूफल
को देखने के पश्चात् तुम्हें मेरी बात पर विश्वास हो जायगा।" [सम्पादक] २ (क) भयवं ! जइ इमं एवं, ता. अहं जम्बूदेवयाए नामेण अठुत्तरसयं अंबिलाणं काहामि
[जम्बुचरियं, गुणपाल, पृ० ५६] (ख) सयमहोत्तरमायंबिलाण मन्नेई धारिणी धीरा ।
सिरिजंबुदेवयाए, तह तन्नामेण सुयनामं ।।१६६॥ जंबुचरित्र, रत्नप्रभमूरि (क) "मगहापुरे उसभदत्तो नाम इभो धारिणी नाम भारिया ....."सा कयाइ सयणगया
सुत्तं - जागरा पंच सुमिणे पासित्ता पडिबुद्धा, तं जहा - विधूमं हुयवहं १, पउमसरं वियसिय - कमलकुमुदकुवलयउज्जलं २, फलभारनमियं च सालिवणं ३, गयं च गलित - जलवलाहकपंडुरं समुसियचउविसाणं ४, जंबुफलागि य वण्णरसगंधोववेयारिण ५ ति । (वसुदेवहिण्डी, प्रथमोऽश, पृ० २) तथा :
[कल्पान्तर्वाच्यानि, पत्र ४१-४८, (हस्तलिखित, संवत् १५६६) अलवर भंडार] (ख) सा अन्नया कयाई पच्छिमजामंमि पेच्छए मुमिरणं ।
सीहं सरं समुद्द दामं जलणं च जम्बुफले ।। (जम्बुचरियं, गुणपाल] (ग) अह मयरायकिसोरं, सेयं मुमिणमि पासिऊणेसा । ___ पडिबुद्धा गन्तूगणं, तं माहइ उसभदत्तस्स ।।१७१।।।
(जबुचरित रत्नप्रभमूरि)
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