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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [प्रायं जम्बू के पूर्वभव त्रिकालदर्शी तीर्थकर भगवान् महावीर के मुख से विद्युन्मालो के पूर्वभवों और भावी-भव का वृत्तान्त सुन कर सबने प्रभु को नमन किया और वे अपने २ स्थान की ओर लौट गये । उस देव की चारों देवियों ने केवली प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को सांजलि शीश झुकाते हुए अत्यन्त विनम्र एवं संभ्रम भरे स्वर में पूछा - "देव ! कृपा कर हमें भी बताइये कि सुरलोक की आयु पूर्ण कर हम चारों कहांकहां उत्पन्न होंगी? विद्युन्माली देव से विछोह हो जाने पर क्या पुनः हमारा उनसे संयोग होगा?"
राजर्षि ने फरमाया - "देवियो! तुम चारों स्वर्ग से च्यवन कर इसी राजग्रह नगर के निवासी वैश्रमरण, धनद, कुबेर तथा सागरदत्त नामक समृद्धिशाली श्रेष्ठियों के यहां पुत्रियों के रूप में उत्पन्न होोगी। वहां जम्बू कुमार के रूप में जन्म ग्रहण किये हुए इस देव के जीव के साथ तुम चारों का पाणिग्रहण संस्कार होगा। जम्बूकुमार के साथ-साथ तुम भी प्रव्रज्या ग्रहण करोगी और संयम की सम्यक् रूपेण साधना कर तुम चारों आयु पूर्ण होने पर ग्रेवेयकों में देव रूप से उत्पन्न होवोगी।"
केवली प्रसन्नचन्द्र से यह सुनकर कि भावी-भव में भी उनका परस्पर वियोग नहीं होगा - देवियां बड़ी प्रसन्न हुईं। उन्होंने श्रद्धावनत हो मुनि को नमन किया और वे सब स्वर्ग की ओर लौट गईं ।
प्रार्य जम्ब के माता-पिता धन-जन और सद्गुण-समृद्ध मगध राज्य की राजधानी राजगृह नगर जिन दिनों उन्नति के उच्चतम शिखर पर आरूढ था, उन दिनों मगध सम्राट महाराज श्रेणिक बिम्बसार मगध पर शासन करते थे। श्रेणिक बड़े धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय एवं लोकप्रिय नरेश थे। राजगृह नगर में ऋषभदत्त नाम के एक अति समृद्ध इभ्य (श्रेष्ठी) रहते थे। उनके पास उनके पूर्वपुरुषों द्वारा न्याय से उपार्जित विपुल सम्पत्ति थी। वह बड़े दयालु, दृढ़ प्रतिज्ञ, दानशील, दक्ष, विनयी और विद्वान् थे। पत्नी का नाम धारिणी था जो विशुद्ध शीलालंकार से अलंकृत और निष्कलंक एवं स्वच्छ स्फटिक मणि के समान निर्मल स्वभाव वाली थी। श्रेष्ठी ऋषभदत्त और उनकी पत्नी धारिणी का जिन-शासन के प्रति बड़ा अनुराग था। वे ऐहिक भोगों का उपभोग करते हुए बड़े संतोष से गृहस्थ जीवन बिता रहे थे। सभी दृष्टियों से सम्पन्न होते हुए भी संतति के अभाव में वे दोनों सदा चिंतित रहते थे। इभ्य-पत्नी धारिणी को निस्संतान होने का बहुत बड़ा दुःख था। वह यदा-कदा इस शोक से संतप्त हो मन ही मन विचार किया करती कि उन स्त्रियों का सुरसुन्दरियों के समान अनुपम रूप-लावण्य, सौन्दर्य पौर लक्ष्मी के समान अक्षय वैभव एवं सुखोपभोग की विपुल सामग्री किस काम की, जिनकी कुक्षि से एक भी संतति का जन्म नहीं हुआ। जिन दिनों इभ्य पत्नी धारिणी अहर्निश इस प्रकार की चिन्ता में घुल रही थी उन्हीं दिनों एक समय
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