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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [आर्य जम्बू के मा०-पि. अनाधृत देव की कृपा एव सानिध्य के कारण सर्व लक्षण-सम्पन्न पुत्र का नाम जम्बू रखा गया।
विद्युन्माली देव के ब्रह्मलोक से धारिणी के गर्भ में पाने के कुछ ही समय पश्चात् उसकी चारों देवियां भी अपनी-अपनी देवी-आयु पूर्ण कर राजगृह नगर के प्रति समृद्ध श्रेष्ठियों के यहां पुत्रियों के रूप में उत्पन्न हुई। उन चारों कन्याओं और उनके माता-पिता के नाम इस प्रकार हैं :पुत्री का नाम पिता का नाम
माता का नाम १. समुद्रश्री
समृद्रप्रिय
पद्मावती २. पद्मश्री
समुद्रदत्त
कमलमाला ३. पद्मसेना
सागरदत्त
विजयश्री ४. कनकसेना
कुबेरदत्त
जयश्री लगभग उन्हीं दिनों चार अन्य कन्यानों ने भी राजगह के सम्पन्न कुलों में जन्म ग्रहण किया। उनके तथा उनके माता-पिता के नाम इस प्रकार हैं :पुत्री का नाम पिता का नाम
माता का नाम ५. नभसेना कुबेरसेन
कमलावती ६. कनकश्री श्रमणदत्त
सुषेरणा ७. कनकवती वसुषेण
वीरमती ८. जयश्री वसुपालित
जयसेना जम्बूकुमार जिस समय धारिणी के गर्भ में आये उसी दिन से श्रेष्ठिवर ऋषभदत्त की समृद्धि एवं सम्मान की उत्तरोत्तर अभिवृद्धि होती गई।
जिस प्रकार कल्पवृक्ष का पौधा क्रमश: वृद्धिगत होता है, ठीक उसी प्रकार पांच निपुण धात्रियों की सार-सम्हाल एवं देख-रेख में बालक जम्बुकुमार बढ़ने लगे। __योग्य प्रायु होने पर बालक जम्बुकुमार के लिये सुयोग्य कलाचार्य के सान्निध्य में शिक्षा की व्यवस्था की गई । कुशाग्र बुद्धि जम्बुकुमार ने दत्तचित्त हो पूर्ण विनय के साय अपने सुयोग्य प्राचार्य के पास शिक्षा प्राप्त की और युवावस्था में पदार्पण करने से पहले ही समस्त विद्यानों और कलानों में दक्षता प्राप्त कर ली।
जम्बुकुमार के साथ उपरिवणित पाठ श्रेष्ठि कन्याओं ने भी युवावस्था में पदार्पण किया। जम्बुकुमार की अति कमनीय सौम्य मुखाकृति उनके दयालुता, १ (क) कयजाय कम्मस्स य से जंबुफललाभ - जंबुदीवाधिपतिकयसन्नेझनिमित्तं कयं नाम
'जबु' त्ति । - वसुदेव हिण्डी, प्र० ग्रंश, पृ० ३ (ख) महया महसवेणं, से नाम निम्पियं सुह मुहुत्ते । ____ दिन्नो जम्बू देवेग जंबुग्णामोत्ति तो होउ ।। १७६।
जम्बूचरित्र (उपदेश माला, दोघट्टि से समुद्धृत)
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