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प्राय जम्बू के पूर्व भव] केवलिकाल : आर्य जम्बू
__ अनाधृत देव के उपरोक्त वचन सुन कर सम्राट् श्रेरिणक ने आश्चर्य भरे स्वर में भगवान् से पूछा - "प्रभो! यह देव अपने आन्तरिक आनन्दोल्लास को प्रकट करते हुए अपने कुल की किस कारण प्रशंसा कर रहा है ? इसका वह कौनसा कुल है और यहां उसकी प्रशंसा का क्या प्रसंग है ?"
भगवान् महावीर ने कहा- “मगघेश! यह जम्बूद्वीप का अधिपति 'अनाधृत' नामक देव है। यह अपने देवभव से पहले के भव में इसी राजगृह नगर के गुप्तिमति नामक श्रेष्ठी का 'जिनदास' नामक छोटा पुत्र था। जिनदास के बड़े भाई का नाम 'ऋषभदत्त' है जिसका आज भी राजगृह नगर के समृद्ध श्रीमन्तों में प्रमुख स्थान है। सदाचारसम्पन्न होने के कारण ऋषभदत्त तो सर्वत्र सम्मानित होने लगा किन्तु उसका छोटा भाई जिनदास मद्यपी, वेश्यागामी और जुपारी बन गया। ऋषभदत्त द्वारा अनेक प्रकार से समझाने-बुझाने पर भी जब जिनदास ने दुर्व्यसनों का परित्याग नहीं किया तो तंग आकर ऋषभदत्त ने अपने प्रात्मीयों, परिजनों और परिचितों को यह ज्ञापित कर जिनदास का परित्याग कर दिया - "अनेक दुर्व्यसनों से ग्रस्त जिनदास आज से न तो मेरा भाई है और न अब उसके साथ मेरा किसी प्रकार का सम्बन्ध है।"
इतना सब कुछ होते हए भी जिनदास अपनी बरी आदतों का परित्याग करने के स्थान पर और अधिक दुर्व्यसनों का सेवन करने लगा। एक दिन जिनदास सेना के एक उच्च अधिकारी के साथ द्यूतक्रीड़ा में निरत था। द्यूत में हार-जीत की धनराशि के सम्बन्ध में जिनदास ने कुछ आनाकानी की इस पर सेनाधिकारी ने क्रुद्ध हो उस पर घातक हमला कर दिया। जिनदास शस्त्रप्रहार से आहत होकर वहीं गिर पड़ा। ऋषभदत्त ने जब भाई के घायल होने की बात सुनी तो वह उसके पास पहुँचा। भाई को देखकर घायल जिनदास को अपने दुष्कृत्यों पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ। उसने ऋषभदत्त के चरणों पर अपना शिर रख दिया और उससे क्षमा-प्रार्थना करते हुए वह निराश एवं करुण स्वर में बोला- "भैया ! अब मैं परलोक के लिए प्रयाण करने वाला हूँ। मुझे आपका कहा न मानने और दुर्व्यसनों में निरत रहने का बड़ा दुःख है। अब अन्तिम समय में आप मुझे धर्म का उपदेश देकर मेरा लोकान्तर सुधारने में मेरी कुछ सहायता कीजिये।"
अपने भाई को मरणासन्न देख कर ऋषभदत्त ने उसे धैर्य दिलाते हुए आजीवन चतुर्विध आहार और प्रारम्भ-परिग्रह आदि का त्याग कराते हुए पंचपरमेष्टि-नमस्कार महामन्त्र का पाठ सुनाना प्रारम्भ किया। शुभ परिणाम एवं नमस्कार महामन्त्र के प्रभाव से जिनदास मृत्यु के पश्चात् जम्बूद्वीप का अधिपति देव हुमा।"
___ "मेरे बड़े भाई का पुत्र भरत क्षेत्र से इस अवसर्पिणीकाल में अन्तिम केवली और मुक्तिगामी होगा" - यह जानकर इसे अत्यधिक प्रसन्नता हुई। इसी कारण इसने पानन्दविभोर होकर अपने कुल की प्रशंसा की है।"
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