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५. विवाह-पण्णत्ति] केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा
१३७ प्रमारण एकेन्द्रियों के उत्पाद का, चौथे में चरम समय, पांचव में अचरम समय कृतयुग्म-कृतयुग्म प्रमाण के एकेन्द्रियों के उत्पाद का, छठे में प्रथम समय, सातवें में प्रथम अप्रथम समय, पाठवें में प्रथम चरम समय, नौवें में प्रथम अचरम समय, दशवें में चरम-अचरम समय और ग्यारहवें में चरम-अंचरम समय कृतयुग्म-कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों के उत्पाद का वर्णन किया गया है।
इसी प्रकार द्वितीय, तृतीय चतुर्थ यावत् बारहवें अवान्तरशतक में क्रमशः कृष्णलेश्य, नीललेश्य, कापोतलेश्य, भवसिद्धिक, कृष्णलेश्य भवसिद्धिक,नीललेश्य भवसिद्धिक कापोतलेश्य भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, कृष्णलेश्य प्रभवसिद्धिक, नीललेश्य अभवसिद्धिक और कापोतलेश्य अभवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों के उत्पाद का प्रथम अवान्तरशतक के समान वर्णन किया गया है ।
- ३६ वें शतक में १२ अवान्तर शतक और उनके कुल मिलाकर १२४ उद्देशक हैं। इन बारहों अवांन्तर शतकों में बेइन्द्रिय महायुग्म के उत्पाद आदि का वर्णन किया गया है अतः इनके नाम प्रथम, द्वितीय, यावत् द्वादश बेइन्द्रिय महायुग्म शतक रखे गये हैं। इनमें से प्रथम आठ अवान्तर शतकों के ग्यारह-ग्यारह उद्देशक और शेष चार के ६-६ उद्देशक हैं। इन सब अवान्तरशतकों के उद्देशकों में ३५ वें शतक के एकेन्द्रिय महायुग्म अवान्तर शतकों के उद्देशकों के समान ही बेइन्द्रियों के उत्पाद अनुबन्ध और लेश्याओं के अनुक्रम से कृतयुग्म-कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन किया गया है।
३७ वें शतक में भी १२ अवान्तर शतक हैं। इसमें कुल मिलाकर १२४ उद्देशक हैं। इस शतक में कृतयुग्म-कृतयुग्म त्रीन्द्रिय जीवों के उत्पाद आदि का पैतीसवें शतक के समान ही वर्णन किया गया है।
- ३८ वें शतक में १२ अवान्तरशतक और १२४ उद्देशक हैं। इस शतक में ३४ वें शतक के समान कृतयुग्म-कृतयुग्म चतुरिन्द्रियों के उत्पाद आदि का वर्णन किया गया है।
३६ वें शतक में भी १२ अवान्तरशतक और १२४ उद्देशक हैं जिनमें ३४ वें शतक के सनान ही असंज्ञी पंचेन्द्रियों के उपपात आदि का वर्णन किया गया है।
४० वें शतक में २१ अवान्तरशतक और प्रत्येक के ग्यारह-ग्यारह उद्देशक के हिसाब से कुल मिलाकर २३१ उद्देशक हैं। इस शतक में संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्मों के उत्पाद आदि का ३४ वें शतक के. अनुसार ही वर्णन किया गया है।
४१ वें (अन्तिम) शतक में कुल मिलाकर १६६ उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में राशियुग्म के चार भेद, उन भेदों के हेतु कृतयुग्म राशि प्रमाण चौवीस दण्डकों के जीवों के उपपात, सान्तर अथवा निरन्तर उपपात, कृतयुग्म के साथ अन्य राशियों के सम्बन्ध का निषेध जीवों के उपपात की पद्धति, उपपात का हेतु, प्रात्मा
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