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७. उबा सगदसाम्रो ]
केवलिकाल : मायं सुधर्मा
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इस पर कुण्डकौलिक श्रावक देव से पूछा - "तुमने देवभव किस तरह से प्राप्त किया है ?"
गृहस्थ श्रावक भी उस सम थे, इसका कुण्डकौलिक के जीवन े
धर्म मर्म के ज्ञाता और दृढ़ श्रद्धालु होते हज ही परिचय हो जाता है ।
सातवें अध्ययन में कुम्भका सद्दालपुत्त की जीवनचर्या का वर्णन किया गया है ! यह पहले मंखलिपुत्र गोक का उपासक था। फिर एक देव द्वारा प्रेरणा पाकर भगवान् महावीर को वन्दन करने गया । उनकी देशना सुनने पर उसके हृदय में कुछ श्रद्धा एवं जिज्ञ सा जागृत हुई । उसने भगवान् कहावीर को अपनी कुम्भकारशाला में पधारने का प्रार्थना की। प्रभु भी अवसर देखकर वहां घारे प्रौर उन्होंने सकड़ालपुत्र के साथ नियतिवाद की यथार्थता पर चर्चा की । प्रभु ने पूछा - "सकडाल ! घड़ा में बनता है ?"
सकडाल ने घटनिर्मारण की सारी प्रक्रिया कह सुनाई । प्रभु ने कहा - "यदि कोई दुर्मति पुरुष धूप में सूखते हुए तेरे घड़ों को पत्थर मारकर फोड़ने लगे और तेरी प्रिय पत्नी प्रग्निमित्रा के साथ छेड़छाड़ एवं कुचेष्टा करे तो तू क्या करेगा ? यदि तेरी मान्यता के अनुसार यह सब कुछ नियतिकृत है तो तुझे उन दुष्ट पुरुषों पर रुष्ट होने एवं उनको मारने कोटने की चेष्टा करना उचित नहीं । यदि तू उन पर रोष करता है और अपराध का दण्ड देने के लिए उन्हें मारता पीटता है तो नियतवश सब कार्य का होना मानना ठीक नहीं ।"
प्रभु महावीर के इस प्रकार के हृदयग्राही एवं तर्कपूर्ण विचारों से प्रभावित हो सकडाल महावीर भगवान् की धर्मप्रज्ञप्ति का अनुयायी बन गया ।
सकडाल के यहां ३० हजार पशु और १ करोड़ की सम्पदा एवं ५०० दुकानें थीं । गोशालक सकडाल के मतपरिवर्तन की सूचना पाकर उसे समझाने प्राया पर सकडाल पुरुषार्थवाद की सम्यक् श्रद्धा पर इतना दृढ़ हो गया था कि उसने गोशालक को प्रादर से देखा तक नहीं । गोशालक ने भगवान् महावीर की स्तुति कर उसे आकर्षित करने का प्रयत्न किया । अन्त में ५ वर्ष तक पड़िमाधारी रूप से विरक्तभाव की साधना कर सकडाल ने भी अनशनपूर्वक स्वर्ग प्राप्त किया।
आठवें अध्ययन में उपासक महाशतक की चर्या का वर्णन किया गया है । - उसके ८० हजार पशु, २४ करोड़ की सम्पदा और रेवती आदि १३ स्त्रियों का परिवार था । पापकर्म के उदय से रेवती अनार्य कर्म करने लगी। मोहोदय से उसको महाशतक का धार्मिक जीवन प्रप्रीतिकर लगने लगा। एक बार वह मद्य के उन्माद में उन्मत्त होकर धर्मसाधना में निरत महाशतक के पास जाकर यद्वातद्वा बोलने लगी । महाशतक ने परिवार से विरक्त हो एकान्तसेवन बालू कर रखा था अतः रेवती के दुर्वचनों को सुनकर भी वह कुछ काल तक शान्त रहा पर रेवती जब अपने प्रसंगत प्रलाप से बाज नहीं आई तो रुष्ट हो महाशतक ने उसे सातवें दिन मर कर छुट्टी नरक में जाने का अनिष्ट भविष्य सुना डाला । भगवान्
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