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१२. दृष्टिवाद
केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा विशिष्ट लब्धियों का वर्णन था। अक्षर पर बिन्दु की तरह सब प्रकार के ज्ञान का सर्वोत्तम सारं इस पूर्व में निहित था। इसी कारण इसे लोकबिन्दुसार अथवा त्रिलोकबिन्दुसार की संज्ञा से अभिहित किया गया है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं की मान्यता के अनुसार इसकी पद संख्या साढ़े बारह करोड़ थी।
उपर्युक्त १४ पूर्वो की वस्तु (ग्रन्थविच्छेदविशेष) संख्या क्रमशः १०, १४, ८, १८, १२, २, १६, ३०, २०, १५, १२, १३, ३० और २५ उल्लिखित है।'
चौदह पूर्वो के उपरोक्त ग्रन्थविच्छेद-वस्तु के अतिरिक्त आदि के ४ पूर्वो की क्रमशः ४, १२, ८ और १० चूलिकाएं (चुल्ल-क्षुल्लक) मानी गई हैं। शेष १० पूर्वो के चुल्ल अर्थात् क्षुल्ल नहीं माने गये हैं। - जिस प्रकार पर्वत के शिखर का पर्वत के शेष भाग से सर्वोपरि स्थान होता है उसी प्रकार पूर्वो में चूलिकाओं का स्थान सर्वोपरि माना गया है।'
अनुयोग - अनुयोग नामक विभाग के मूल प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग ये दो भेद बताये गए हैं। प्रथम मूल प्रथमानुयोग में अरहन्तों के पंचकल्याणक का विस्तृत विवरण तथा दूसरे गंडिकानुयोग में कुलकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि महापुरुषों का चरित्र दिया गया था।
दृष्टिवाद के इस चतुर्थ विभाग अनुयोग में इतनी महत्वपूर्ण विपुल सामग्री विद्यमान थी कि उसे जैन धर्म का प्राचीन इतिहास अथवा जैन पुराण की संज्ञा से अभिहित किया जा सकता है ।
दिगम्बर परम्परा में इस चतुर्थ विभाग का सामान्य नाम प्रथमानुयोग पाया जाता है।
चूलिका - समवायांग और नन्दी सूत्र में आदि के चार पूर्वो की जो चूलिकाएं बताई गई हैं, उन्हीं चूलिकायों का दृष्टिवाद के इस पंचम विभाग में समावेश किया गया है। यथा :- "से. किं तं चूलियाओ? चूलियारो पाइल्लाणं चउण्हं पुवारणं चूलिया, सेसाई अचूलियाई, से तं चूलियाओ।" पर दिगम्बर परम्परा में जलगत, स्थलगत, मायागत, रूपगत और आकाशगत-ये पांच प्रकार की चूलिकाएं बताई गई हैं। • दस चोद्दस अट्ठ अट्ठारसेव बारस दुवे य वत्थूगिण । सोलस तीसा वीसा पण्णरस अणुप्पवायम्मि । बारस इक्कारसमे बारसमे तेरसेव वत्यूणि । तीसा पुण तेरसमे चोद्दसमे पण्णवीसा उ ।। २ चतारि दुवालस अट्ठ चेव दस चेव चूलवत्यूरिण । • पाइल्लाण चउण्हं सेसारणं चूलिया नत्यि :
[श्रीमानन्दीमूत्रम् (पू० हस्तीमलजी म. सा. द्वारा अनूदित) पृ. १४८] 3 ते सखुवरि ठिया पहिग्जंति य प्रतो तेसु य पम्वय चूला इव चूला। [नन्दीचूणि]
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