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१. पहाबागरण] केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा के विविध कारणों में से मुख्य कारणों का उल्लेख करते हुए इसमें बताया गया है कि अस्थि, मांस, चर्म आदि प्राण्यंगों के लिए तथा शरीर एवं भवन आदि की शोभा बढ़ाने हेतु मुख्यतः त्रस जीवों की हिंसा की जाती है। पथ्वी, जल आदि स्थावरकायिक जीवों की हिंसा के कारणों का उल्लेख करने से पहले इसमें कहा गया है कि मन्दबुद्धि लोग जानते हुए और अनजान में भी स्थावरकायिक जीवों की हिंसा करते हैं। पृथ्वीकाय की हिंसा के कारणों को बताते हुए यह कहा गया है कि कृषि, कुआ, बावडी, चैत्य, स्मारक, स्तूप, घर, भवन, मन्दिर, मूर्ति और भाण्डोपकरण आदि के लिए मंदबुद्धि प्राणी हिंसा करते हैं। - क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक आदि हिंसा के अंतरंग कारणों का उल्लेख करते हुए इसमें बताया गया है कि धर्म, अर्थ और काम के निमित्त से मन्द बुद्धिवाले प्राणी प्रयोजनवशात् तथा निष्प्रयोजन ही जीवों की हिंसा करते हैं।
हिंसा करने वालों में शिकारी, पारधि, धीवर प्रादि क्रूरकर्मी तथा शक, यवन आदि ५० प्रकार के अनार्यों को गिनाया गया है।
हिंसाजन्य पाप के फलस्वरूप होने वाले दुःखों में नरक और तिर्यंचों के विविध दुःखों का उल्लेख किया गया हैं। जो लोग चैत्य, मंदिर, मठ और यज्ञयागादि धर्मकार्यों में होने वाली हिंसा को हिंसा नहीं मानते उन्हें प्रश्नव्याकरण के इस अध्ययन का ध्यानपूर्वक पठन एवं मनन करना चाहिए। इसमें अर्थ और काम निमित्त की जाने वाती हिंसा की ही तरह धर्म हेतु की जाने वाली हिंसा को भी अधर्म बताया गया है। इसमें हिंसा, हिंसा के विविध कारण और हिंसक अनार्य जातियों का विस्तृत परिचय दिया गया है।
२. द्वितीय अध्ययन में झूठ को भयंकर और अविश्वासकारक बताते हुए झूठ बोलने वालों के ३० नाम दिये गये हैं, जिनमें मृषाभाषी, क्रोधी, लोभी, भयग्रस्त, हास्यवश झूठ बोलने वाले, अधिकांश गवाह चोर, भाट, जुमारी, वेषधारी, मायावी, अवैध माप-तौल करने वाले, स्वर्णकार, वस्त्रकार, चुगलखोर, दलाल, लोभी, स्वार्थी आदि के नाम बताये गए हैं। धार्मिक दृष्टि से नास्तिकों, एकान्तवादियों और कुदर्शनियों को भी मृषाभाषी बताया गया है।
नरक, तिर्यंच गति की अजस्र एवं असह्य वेदना, दुर्मति और अशुभवचन आदि को मृषाभाषण का फल बताते हुए इसमें कहा गया है कि मृषावादी इस लोक और परलोक-उभयत्र ही सव प्राकर के कष्टों और अविश्वास का पात्र होता है।
३. तीसरे अध्ययन में चोरी को चिन्ता एवं भय की जननी तथा साधपुरुषों द्वारा विनिन्दित बताते हए इसके चोरी, एवं हरण आदि ३० नामों का उल्लेख किया गया है। चोरी कौन लोग किस प्रकार करते हैं - यह समझाते हुए कहा गया है कि अत्यधिक लालसा वाले, परधन और परकीय भूमि पर पासक्त,
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