________________
१०. पन्हावामरण) निकाल : मार्य सुवर्मा
१५७ ४५ उद्देशनकाल, संख्यातसहस्र पद', संख्यात अक्षर, परिमित वाचनाएं, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियां, संख्यात संग्रहरिणयां और संख्यात ही प्रतिपत्तियां हैं।"
स्थानांग सूत्र में प्रश्नव्याकरणसूत्र के निम्नलिखित १० अध्ययनों का उल्लेख है :
उपमा (१), संख्या (२), ऋषिभाषित (३), प्राचार्यभाषित (४), महावीरभाषित (५), क्षोभक प्रश्न (६), कोमल प्रश्न (७), अद्दाग प्रश्न (८), अंगुष्ठ प्रश्न (९) और बाहु प्रश्न (१०) ।
. दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ अंगपण्णत्ति और राजवातिक आदि ग्रन्थों में भी स्थानांग से कुछ मिलता-जुलता इस अंग के विषयों का उल्लेख किया गया है।
वर्तमान में उपलब्ध इस दशम अंग प्रश्नव्याकरण में न तो उपरिवरिणत विषय ही हैं और न ४५ अध्ययन ही। प्राज जो प्रश्नव्याकरण उपलब्ध है वह दो खण्डों में विभाजित है । इसके प्रथम खण्ड में ५ प्राश्रवद्वारों का वर्णन है और दूसरे खण्ड में पांच संवरद्वारों का। ५ प्राश्रवद्वारों में हिंसादि पांच पापों और संघरद्वारों में हिंसादि पापों के निषेधरूप अहिंसादि ५ व्रतों का सुव्यवस्थित विवरण दिया गया है।
· श्वेताम्बर परम्परा के समवायांग, स्थानांग और नन्दीसूत्र में तथा दिगंबर परम्परा के मान्य ग्रन्थों राजवातिक, धवला, अंगपण्रणत्ति आदि में प्रश्नव्याकरणसूत्र के जिन विषयों का उल्लेख किया गया है उन विषयों का उपलब्ध प्रश्नव्याकरणसूत्र में नामशेष भी दृष्टिगोचर न होकर जो उनसे सर्वथा भिन्न विषयों का निरूपण मिलता है, उसके सम्बन्ध में वृत्तिकार अभयदेव सूरि का निम्नलिखित स्पष्टीकरण दृष्टव्य है :
___ "इस समय का कोई अनधिकारी व्यक्ति प्रश्नव्याकरण सूत्र में वरिणत विचारों का दुरुपयोग न कर बैठे इस आशंका से वे सब विद्याएं इस सूत्र में से "नवरं संख्येयानि पदसहस्राणि द्विनवतिलक्ष्यः षोडश सहस्रा इत्यर्थः ।
नंदी-मलयवृत्ति, पृ० ४७२, धनपतिसिंह] २ पम्हस्स दूदवयणगठ्ठपमुठिमणुत्थयसरूवस्स। पादुणरमूलजस्स वि प्रत्यो तियकालगोचरयो ।।५७।। पणषण्णजयपराजयलाहालाहादिसुहदुहं णेयं । बीवियमरणत्यो वि य जत्य कहिज्जह सहावेण ॥५८।। परमाणुयोगकरणाणुयोगवरचरणदव्यप्रणुयोगं । संठाणं लोपस्स य, यदि सावयधम्मवित्थारं ।।६०।। संसारदेहभोगा रागो जीवस्स जायदे तम्हा । ममुहाणं कम्माएं, बंघो तत्तो हवे दुक्खं ।।७।।
[अंगपण्णत्ति)
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org