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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [५. वियाह-पण्णत्ति का प्रसंयम प्रादि का वर्णन करने के पश्चात् सलेश्य और सक्रिय प्रात्म असंयमी और क्रिया रहित की सिद्धि प्रादि का निरूपण किया गया है ।
___ द्वितीय उद्देशक में त्र्योज राशि प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात, तृतीय में द्वापर और चतुर्थ में कल्योज राशि प्रमाण चौवीस दण्डकों के जीवों के उपपात के विषय में विवरण दिया गया है ।
पंचम उद्देशक में कृष्णलेश्या वाले कृतयुग्म प्रमाण, छठे में कृष्ण लेश्या व्योज राशि प्रमाण, सातवें में कृष्ण लेश्या वाले द्वापर युग्म प्रमाण और पाठवें में कृष्ण लेश्या वाले कल्योज प्रमाण चौवीस दण्डकों के जीवों के उपपात का वर्णन किया गया है।
, नवमें से १२ वें उद्देशक में नीललेश्या वाले, तेरहवें से सोलहवें उद्देशक में कापोत लेश्या वाले, सत्रहवें से बीसवें उद्देशक में तेजोलेश्या वाले, २१ वें से चौबीसवें उद्देशक में पद्म लेश्या वाले, और पच्चीसवें से २८ वें उद्देशक में शुक्ललेश्या वाले चार राशि युग्म प्रमाण चौवीस दण्डकों के जीवों के उपपात का वर्णन किया गया है।
२६ ३ से ५६ वें उद्देशक में चार राशि युग्मप्रमारण भवसिद्धिक, ५७ से ८४ ३ उद्देशक में चार राशि युग्मप्रमाण अभवसिद्धिक, ८५ से ११२ वें उद्देशक में चार राशि युग्मप्रमाण सम्यग्दृष्टि भवसिद्धिक, ११३ ३ से १४० वें उद्देशक में चार राशि युग्मप्रमाण मिथ्यादृष्टि भवसिद्धिक कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या वाले चौवीस दण्डक के जोवों के उपपात का वर्णन किया गया है।
.. १४१ वें से १६८ वें उद्देशक में चार राशि युग्मप्रमाण कृष्णपक्षी और १६६ वें से १६६ उद्देशक में चार राशि युग्मप्रमाण शुक्लपक्षी चौवीस दण्डकों के जीवों के उपपात का वर्णन किया गया है।
व्याख्या प्रज्ञप्ति में भगवान् महावीर के जीवन का, उनके शिष्यों, भक्तों, गृहस्थ अनुयायियों, अन्य तीथिकों एवं उनकी मान्यताओं का विस्तृत परिचय दिया गया है। गौशालक के सम्बन्ध में जितना विस्तृत परिचय इस अङ्ग में मिलता है उतना अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। इसके साथ ही साथ भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायियों तथा चातुर्याम धर्म के सम्बन्ध में व्याख्या प्रज्ञप्ति में स्थान-स्थान पर विवरण मिलते हैं। भगवान महावीर के पंचमहाव्रत धर्म से प्रभावित होकर अनेक पापित्यों ने चातुर्याम धर्म के स्थान पर पंचमहाव्रत धर्म अंगीकार किया, इस प्रकार के विवरण व्याख्या प्रज्ञप्ति में बहुलता से उपलब्ध होते हैं।
इसके अतिरिक्त कूणिक और महाराज चेटक के बीच हुए महाशिलाकण्टक संग्राम एवं रथमुसल संग्राम नामक दो महायुद्धों का व्याख्याप्रज्ञप्ति में बड़ा ही
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