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५. वियाह पम्पत्ति केवलिकाल : प्रायं सुधर्मा
१४३ • व्याख्याप्रज्ञप्ति के शतकों, वर्गों, अवान्तरशतकों एवं उद्देशकों की संख्या इस प्रकार है :शतक वर्ग प्रवा० श० उद्देशक शतक वर्ग अवा० श० उद्देशक
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इस प्रकार व्याख्याप्रज्ञप्ति में ४१ शतक, वर्ग १६, अवान्तरशतक १०५, शतक और अवान्तरशतक दोनों मिलाकर १३८ तथा उद्देशक १८८३ हैं। शतक संख्या ३३ से ४० तक के ८ शतक अवान्तरशतकों से गठित हैं। अतः शतकों और अवान्तरशतकों की गणना में इन पाठ शतकों की पृथक् गणना नहीं करने के कारण शतकों एवं उपशतकों की सम्मिलित संख्या १३८ होती है।
६. नायाधम्मकहानो नायाधम्मकहानो का संस्कृत नाम ज्ञातधर्मकथा है। द्वादशांगी के क्रम में इसका छठा स्थान है। इसमें उदाहरणप्रधान धर्मकथाएं दी हुई हैं, जिनमें मेघकुमार आदि के नगरों, उद्यानों, चैत्यों, वनखण्डों, राजाओं, माता-पिता, समवसरणों, धर्माचार्यों, धर्मकथाओं, ऐहिक एवं पारलौकिक ऋद्धियों, भोग परित्याग, प्रव्रज्या, श्रतपरिग्रह, उत्कृष्ट तपस्याओं, पर्यायों, संलेखनामों, भक्तप्रत्याख्यानों, पादपोपगमनों, स्वर्गगमन, उत्तम कुल में जन्म, बोधिलाभ, अन्तक्रिया आदि विषयों का वर्णन तथा भगवान महावीर के विनयमूलक श्रेष्ठ शासन में प्रवजित उन साधकों का वर्णन है जो ग्रहण किये हुए व्रतों के परिपालन में दुर्बल, शिथिल, हतोत्साहित, विषयसुखमूर्छित, संयम के मूल गुणों एवं उत्तरगुणों की विराधना
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