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६. नायाधम्मकहाओ ]
केवलिकाल : श्रार्य सुधर्मा
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साधना में निरत रहने के एक मात्र उद्देश्य को दृष्टि में रखते हुए साधक ग्राहारादि से किस प्रकार अपने शरीर को प्रारण धारण करने योग्य बनाए रखे ।
तीसरे 'मयूराण्ड' नामक अध्ययन में सार्थवाहपुत्रों के उदाहरण के माध्यम से शास्त्रवारणी में शंका न करने का उपदेश दिया गया है ।
चौथे 'कूर्म अध्ययन' में दो कट्टयों के उदाहरण से इन्द्रियों को वश में करने और न करने के लाभ एवं हानि का दिग्दर्शन कराते हुए साधक को इन्द्रियविजय का उपदेश दिया गया है।
पांचवें 'थावच्चापुत्र' के अध्ययन में श्रीकृष्ण वासुदेव के परिवार में समुद्रविजय आदि दण दशार्ह, उग्रसेन ग्रादि १६ हजार राजा, प्रद्युम्नकुमार श्रादि साढ़े तीन करोड़ कुमार, २१ हजार वीर, ५६ हजार बलवान् और रुक्मिणी यादि ३२ हजार रानियों का उल्लेख किया गया है । इस अध्ययन में श्रीकृष्ण द्वारा गाथापतिपुत्र थावच्चापुत्र की दीक्षा का समुचित प्रबन्ध करने का, थावच्च । पुत्र मुनि द्वारा सेलक राजा को उसके पांच सौ साथियों सहित दीक्षित करने. शुकदेव सन्यासी के साथ धर्मचर्चा का शुकदेव परिव्राजकाचार्य के प्रतिबुद्ध हो शिष्यों सहित श्रमरणधर्म में दीक्षित होने एवं पन्थक मुनि द्वारा सेलक राजपि के प्रमाद - परिहार का वर्णन किया गया है।
छट्ठे अध्ययन में जीव का तूंबे के उदाहरण से हल्के और भारी होने का स्वरूप समझाया गया है। जिस प्रकार मिट्टी के लेप से भारी बना हुआ तूंवा जल में डूब जाता है और मिट्टी का लेप हट जाने पर ऊपर आकर तैरने लगता है, उसी प्रकार कर्मबन्धन से बन्धा हुआ आत्मा संसारसमुद्र में डूबता और बन्धन कटने पर हल्का होकर भवसागर को पार कर लेता है ।
सातवें अध्ययन में धन्ना सार्थवाह की ४ पुत्रवधुत्रों के उदाहरण से संयमी साधु की योग्यता का मापदण्ड बताया गया है। जैसे श्रेष्ठी की पुत्रवधुओं में से एक ने श्रेष्ठी द्वारा दिये गए ५ शालीकरणों को फेंक दिया, दूसरी ने प्रसाद समझकर खा डाला, तीसरी ने यथावत् सुरक्षित रखा और चौथी ने कृषि के माध्यम से उन पांच शालीकरणों को सहस्रों गुना बढ़ाकर श्रेष्ठी के घर में सम्मान प्राप्त किया उसी प्रकार जो शिष्य गुरु द्वारा दिये गए व्रतों को प्रमाद और खानपान के भोग में न गंवाकर सुरक्षित रखता है अथवा प्रचार-प्रसार के द्वारा बढ़ाता है, वह भी गुरु द्वारा सम्मान प्राप्त करता है ।
आठवें मल्ली अध्ययन में १६ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ भगवान् के जन्म. बालक्रीड़ा, विवाह के लिए ६ राजाओं के आगमन, मल्ली भगवती द्वारा स्वर्णपुतलिका के माध्यम से राजाओं को प्रतिबुद्ध कर दीक्षित करने और दोलाग्रहगा के दिन ही मल्लिनाथ भगवान् द्वारा घाति कर्मों को क्षय कर केवलज्ञान प्राप्न करने एवं चतुविध तीर्थ की स्थापना कर भावतीर्थंकर बनने का वर्णन किया गया है । मल्लिनाथ के धर्मपरिवार, विहारक्षेत्र, संहनन, संस्थान, वर्ण श्रीर
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