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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [षपस्थकालीन साधना . आर्य सुधर्मा मतिज्ञान, श्रुतिज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान - इन चार ज्ञान के धारक थे। प्रागम और प्रागमेतर साहित्य में जिस प्रकार इनके केवलज्ञान की उपलब्धि का समय मिलता है उस प्रकार इन्हें चार ज्ञान कब हुए, इसका कहीं कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। फिर भी इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आर्य सुधर्मा भगवान् महावीर की विद्यमानता में ही चार ज्ञान के धारक हो चुके थे और वर्षों चार ज्ञान के धारी रहे ।
सुधर्मा के गरण और साधु अग्निभूति आदि ६ गणधर आर्य सुधर्मा को दीर्घजीवी समझ कर उन्हें अपना-अपना गण सम्हला कर भगवान् महावीर की विद्यमानता में ही सिर-परमुक्त हो गये, अतः क्रमश: उनके निर्वाण से एक-एक मास पूर्व उनके गणों का भी आर्य सुधर्मा के गरण में विलय हो गया और उन ६ गणधरों के गणों के सभी श्रमण आर्य सुधर्मा के अन्तेवासी कहलाने लगे।'
६ गणषरों का निर्वाणकाल और सुधर्मा के साषु भगवान् महावीर के निर्वाण से पूर्व जिन ६ गणधरों का निर्वाण हुमा एवं जिनके गण प्रार्य सुधर्मा के गण में विलीन हुए उनके नाम व निर्वाणकाल निम्न प्रकार से हैं :गरणधर-नाम
निर्वाण-काल द्वितीय गणधर अग्निभूति वीर-निर्वाण से २ वर्ष पूर्व तृतीय गणधर वायुभूति वीर-निर्वाण से २ वर्ष पूर्व चतुर्थ गरगधर आर्य व्यक्त वीर-निर्वाण से कुछ समय पूर्व छठे गणधर आर्य मण्डित
वीर-निर्वाण से कुछ समय पूर्व सातवें गणधर प्रायं मौर्यपुत्र बीर-निर्वाण से कुछ समय पूर्व पाठवें गणधर पार्य अकम्पित वीर-निर्वाण से कुछ समय पूर्व नवमें गणधर अचलभ्राता वीर-निर्वाण से ४ वर्ष पूर्व दशवें गणधर मेतार्य
वीर-निर्वाण से ४ वर्ष पूर्व. ग्यारहवें गणधर आर्य प्रभास वीर-निर्वाण से ६ वर्ष पूर्व ये ही गणधर एक मास की संलेखना से राजगृह में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गये।
इसके परिणामस्वरूप आर्य सुधर्या के शिष्य-श्रमणों की संख्या भगवान् महावीर की विद्यमानता में ही ३६०० तक पहुंच गई।
ग्यारह गणधरों के श्रमणों की कुल संख्या ४४०० आगम एवं प्रागमेतर साहित्य में बताई गई है और भगवान महावीर के संघ में कुल साधु १४,००० थे। उनमें से इन्द्रभूति के ५०० श्रमणों को छोड़ कर शेष साधु-समुदाय ' परिणिव्या गणहरा जीवंते णायए रणव जणाउ । ६५८
[पावश्यक नियुक्ति, भा० १]
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