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२. सूत्रकृतांग
केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा है । कुछ वनस्पतियां उदकयौनिक भी बताई गई हैं। अन्त में प्रारणभूत जीव तत्व की अनेक योनियों में उत्पत्ति, आहार, शरीर और तत्वों के स्वरूप को पहिचान कर मुनि को "पाहारगुप्त" रहने की शिक्षा दी गई है।
'चौथे - "प्रत्याख्यान अध्ययन" में, यह बताते हुए कि प्रत्याख्यान नहीं करने से सर्वदा पाप-कर्मों का उपार्जन होता है, प्रत्याख्यान करने की शिक्षा दी गई है।
। पांचवें - "प्राचारश्रृत अध्ययन" में एकान्त वचन का निषेध करते हुए अनाचार के त्याग का उपदेश दिया गया है ।
छठे प्रार्द्रकुमार के अध्ययन में प्रार्द्रकुमार के गोशालक, ब्राह्मणों और हस्तितापसों के साथ संवाद का वर्णन किया गया है। प्रसंगोपात्त शाक्य भिक्षुषों की भोजनचर्या का भी इसमें वर्णन है।
सातवें - "नालन्दीय अध्ययन" में लेप गाथापति के धार्मिक जीवन और उसके द्वारा भवन-निर्माण से बची हुई सामग्री से बनाई गई "सेसदविया" नाम की एक उदकशाला का उल्लेख है।
इसके पश्चात् उस उदकशाला से ईशान कोणस्थ वनखण्ड के एक भाग में विराजमान इन्द्रभूति गौतम के साथ पार्धापत्य पैढालपुत्र का संवाद और गौतम से प्रतिबोध पाकर पैढालपुत्र द्वारा भगवान् महावीर के पास चातुर्याम धर्म का परित्याग कर पंचमहाव्रत-धर्म स्वीकार करने का उल्लेख है।
उपरोक्त संवाद में प्रश्नोत्तर के संदर्भ में एक स्थान पर यह बताया गया है कि जो लोग सम्पूर्ण पापों का परित्याग नहीं कर सकने की स्थिति में देशविरति धर्म स्वीकार कर त्रस जीवों की हिंसा का त्याग करते हैं वह त्याग भी उनके लिये कुशल एवं लाभ का कारण होता है। इसमें स्थावर काय की हिसा के खुले रखने का त्याग कराने वाले को दोष नहीं लगता। इस बात को समझाने के लिए एक उदाहरण दिया गया है, जो इस प्रकार है :
रत्नपुर के राजा ने एक दिन कौमुदी महोत्सव के अवसर पर अपने नगर में घोषणा करवाई कि महोत्सव के दिन कोई भी पुरुष नगर में न रहे। यदि कोई व्यक्ति रात्रि के समय नगर में रहा तो उसे मृत्युदण्ड दिया जायगा । राजाज्ञानुसार कौमुदी-महोत्सव के दिन सभी लोग संध्या होते-होते नगर से बाहर चले गये लेकिन एक व्यापारी के छः पूत्र कार्य में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण समय पर नगर से बाहर नहीं जा सके । सूर्यास्त के पश्चात् जब वे श्रेष्ठिपुत्र नगर से बाहर जाने के लिए उद्यत हुए तो उन्होंने नगर के सब द्वार बन्द पाये । परिणामतः भयभीत होकर वे छहों भाई किसी गुप्त स्थान में छुप बैठे।
दूसरे दिन गुप्तचरों द्वारा राजा को जब यह ज्ञात हुआ कि रात्रि में ६ श्रेष्ठिपुत्र राजाज्ञा का उल्लंघन कर नगर के अन्दर ही रहे, तो वह बड़ा क्रुद्ध हरा। राजा ने छहों वरिणकपुत्रों के वध की आज्ञा दी। अपने पुत्रों के वध की सूचना मिलते ही श्रेष्ठी बड़ा दुखित हमा। उसने राजा के पास जाकर प्रार्थना की
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