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४. समवायांग ]
केवलिकाल : श्रार्यं सुधर्मा
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२४ देवाधिदेव कहे गये हैं । २५ वें समवाय में पांच महाव्रतों की २५ भावनाओं और प्राचारांग के २५ अध्ययन तथा २५ संख्या वाली वस्तुनों का उल्लेख किया गया है । २६ वें समवाय में अभव्य के मोह की २६ प्रकृतियां सत्ता में मानी गई हैं । २७ वें समवाय में साधु के २७ गुरण आदि का वर्णन किया गया है । २८ वें समवाय में मोहकर्म की २८ प्रकृतियों और मतिज्ञान के २८ भेद आदि का वर्णन है । २६ वें समवाय में २६ पापश्रुत तथा प्राषाढ, भाद्रपद, कार्तिक, पोष, फाल्गुन और वैशाख - ये छः मास २६ दिन के बताये गये हैं ।
३० वें समवाय में महामोह-बन्ध के ३० कारण, तीस मुहूर्त के ३० नाम और मंडित पुत्र गरगघर का तीस वर्ष का दीक्षाकाल आदि बताया गया है । ३१ वें समवाय में सिद्धों के ३१ गुण आदि का वर्णन किया गया है । ३२ वें समवाय में ३२ योगसंग्रह और ३२ देवेन्द्र प्रादि बताये गये हैं ।
३३ वें समवाय में गुरु की ३३ प्रकार की आशातना आदि, ३४ वें समवाय में तीर्थंकर के ३४ अतिशय और ३५ वें समवाय में तीर्थंकर की वाणी के ३५ अतिशयों (नाम नहीं) का उल्लेख किया गया है । ३६ वें में उत्तराध्ययन सूत्र के ३६ अध्ययन आदि, ३७ वें में कुंथुनाथ स्वामी के ३७ गण और गणधर प्रादि, ३८ वें समवाय में पार्श्वनाथ की ३८,००० श्रर्यिकाएं श्रादि ३६ वें में नमिनाथ के ३६०० अवधिज्ञानी, समय क्षेत्र में ३६ कुलपर्वत आदि, ४० वें में प्ररिष्ठनेमि की ४०,००० आर्यिकाएं श्रादि, ४१ वें में नमिनाथ की ४१,००० प्रार्यिकाएं आदि और ४२ वें समवाय में श्रमण भगवान् महावीर के ४२ वर्ष साधिक श्रामण्य पालकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने तथा नाम कर्म के ४२ भेद - गति, जाति आदि का उल्लेख किया गया है ।
४३ वें समवाय में कर्मविपाक के ४३ अध्ययनः आदि ४४ वें में ऋषिभाषित के ४४ अध्ययन आदि और ४५ वें में मनुष्य क्षेत्र, सीमंतक, नरकावास उडुबिमान और सिद्धशिला इन चारों में से प्रत्येक को ४५ लाख योजन विस्तार वाला बताया गया है ।
४६ वें समवाय में दृष्टिवाद के ४६ मातृकापद और ब्राह्मीलिपि के ४६ मातृकाक्षर बताये गये हैं । ४७ वें समवाय में स्थविर श्रग्निभूति के ४७ वर्ष तक गृहवास में रहने का उल्लेख है । ४८ वें समवाय में चक्रवर्ती के ४८,००० पाटण और भगवान् धर्मनाथ के ४८ गरण एवं ४८ गणधर बताये गए हैं । ४६ वें समवाय में तीन इन्द्रिय वाले जीवों की ४६ अहोरात्र की स्थिति श्रादि, ५० वें में भगवान् मुनिसुव्रत की ५०,००० आर्यिका ५१ वें में नवब्रह्मचर्य अध्ययन के ५१ उद्देशनकाल, ५२ वें समवाय में मोहनीय के ५२ नाम आदि का उल्लेख है ।
५३ वें समवाय में श्रमरग भगवान् महावीर के ५३ साधुओं के एक वर्ष की दीक्षा से अनुत्तर विमान में जाने का उल्लेख है । ५४ वें में बताया गया है कि भरत तथा ऐरवत में क्रमशः ५४-५४ उत्तम पुरुष हुए, प्ररिष्टनेमि ५४ रात्रि छपस्थ रहे
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