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":३. स्थानांग]
केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा (५) और त्रसकायिक जीव (६) । जीव की छः प्रकार को लेश्या (मनोवत्ति)कृष्ण लेश्या (१), नील लेश्या (२), कापोत लेश्या (३), तेजो लेश्या (४), पद्म लेश्या (५) और शुक्ल लेश्या (६) । आहार-ग्रहण के छ: कारण, छः प्रकार का बाह्यतप, छः प्रकार का प्रान्तरिक तप इत्यादि ।
सातवें प्रकरण में पूर्वोक्त पदार्थों का सात की संख्या में वर्णन किया गया है। जैसे-जीव के सात प्रकार-सूक्ष्म एकेन्द्रिय (१), बादर एकेन्द्रिय (२), द्वीन्द्रिय (३), त्रीन्द्रिय (४), चतुरिन्द्रिय (५), असज्ञी पंचेन्द्रिय (६) और संज्ञी पंचेन्द्रिय (७) । सात भय के स्थान-इस लोक का भय (१), परलोक का भय (२), आदान भय (३), प्राकस्मिक भय (४), अयश भय (५), प्राजीविका भय (६) और मरण भय (७)। सप्त स्वर का स्वर मण्डल में विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। इसमें जमालि आदि सात निन्हवों का भी उल्लेख किया गया है।
(८) आठवें स्थान में प्रात्मा आदि का पाठ संख्या से वर्णन किया गया है। जैसे - प्रात्मा आठ प्रकार का-द्रव्य प्रात्मा (१), कषाय प्रात्मा (२), योग प्रात्मा (३), उपयोग आत्मा (४), ज्ञान प्रात्मा (५), दर्शन प्रात्मा (६), चारित्र आत्मा (७) और वीर्य पात्मा (८) । पाठ प्रकार का मदस्थान- जाति मद स्थान (१), कुल मद स्थान (२), बल मद (३), रूप मद (४), लाभ मद (५), तप मद (६), श्रुत मद (७) और ऐश्वर्य मद स्थान (८)। पाठ प्रकार की समिति- ईर्या-समिति (१), भाषा-समिति (२), एषणा-समिति (३),
आदान-निक्षेपरणा-समिति (४), परिष्ठापना-समिति (५), मन-समिति (६), - वाक्समिति (७) और काय-समिति (८)।
(E) नौवें स्थान में प्रत्येक पदार्थ का ६ की संख्या में वर्णन किया गया है। इसमें नव तत्त्व, नव ब्रह्मचर्य-गुप्ति और चक्रवर्ती की निधियों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । पुण्य के ६ प्रकार - अन्न पुण्य (१), पान पुण्य (२), लयन पुण्य (३), शयन पुण्य (४), वस्त्र पुण्य (५), मन पुण्य (६), वचन पुण्य (७) काय पुण्य (८) और नमस्कार पुण्य (8)। ६ पाप के स्थान -प्रारणातिपात (१), मृषाभाषण (२), चौर्य (३), अब्रह्म (४), परिग्रह (५), क्रोध (६), मान (७) माया (८) और लोभ (६) । नव कोटि प्रत्याख्यान-हिंसा करना नहीं, कराना नहीं, करने वाले को भला जानना नहीं (३), पकाना नहीं, पकवाना नहीं और पकाने वाले का अनुमोदन करना नहीं (६), न खरीदना, न खरीदवाना और न खरीदने वाले का अनुमोदन करना (६)। इत्यादि।
(१०) दशवें प्रकरण में प्रत्येक वस्तु का १०-१० की संख्या से वर्णन किया गया है। धर्म के १० प्रकार-क्षान्ति (१), मक्ति-निर्लोभता (२), मार्जव. धर्म (३), मार्दवधर्म (४), लाघवधर्म (५), सत्यधर्म (६), संयमधर्म (७), तपधर्म (८), त्यागधर्म (8) और ब्रह्मचर्यवास (१०)। १० प्रकार का धर्मग्रामधर्म (१), नगरधर्म (२), कुलधर्म (३), गणधर्म (४), संघधर्म (५),
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