________________
११०
जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग
[ श्राचारांग
है कि वस्तुतः श्राचारांग विश्वधर्म का प्रतीक है । विश्वबन्धुत्व की भावनाओं से प्रोतः प्रोत सच्चे और आदर्श मानवीय सिद्धान्तों का इसमें सजीव वर्णन होने के कारण आचारांग का केवल द्वादशांगी में ही नहीं अपितु संसार के समग्र धर्मशास्त्रों में एक बड़ा ऊंचा एवं महत्वपूर्ण स्थान है ।
आचारांग के ह्रास एवं तथाकथित विच्छेद विषयक विविध मान्यताओं पर " द्वादशांगी का ह्रास" शीर्षक आगे के प्रकरण में यथाशक्य समुचित प्रकाश डालने का प्रयास किया जायगा ।
२. सूत्रकृतांग
द्वादशांगी के क्रम में सूत्रकृतांग का दूसरा स्थान है । नियुक्तिकार ने इस अंग के सूयगड के अलावा सूतगड, सुत्तकड़ और सुयगड- ये तीन और नाम भी बताये हैं ।' समवायांग में आचारांग के पश्चात् सूत्र कृतांग का परिचय देते हुए कहा गया है कि इसमें स्वमत, परमत, जीव, प्रजीव, पुण्य, पाप, श्रास्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष प्रादि तत्वों का निरूपण एवं नवदीक्षितों के लिए हितकर उपदेश हैं । इसमें एक सौ अस्सी क्रियावादी मतों, चौरासी प्रक्रियावादी मतों, सड़सठ अज्ञानवादी मतों एवं बत्तीस विनयवादी मतों - इस प्रकार कुल मिलाकर तीन सौ त्रेसठ अन्य मतों पर चर्चा की गई है । इन सब की समीक्षा के पश्चात् यह बताया गया है कि अहिंसा ही धर्म का मूल स्वरूप और श्रेष्ठ तत्व है ।
सूत्र कृतांग के दो श्रुतस्कन्ध हैं । इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध में सोलह और द्वितीय श्रुतस्कंध में सात इस तरह कुल २३ अध्ययन, ३३ उद्देशनकाल, ३३ समुद्देशनकाल तथा ३६,००० पद हैं । समवायांग सूत्र की २३ वीं समवाय में सूत्र कृतांग के तेबीस अध्ययनों का नामोल्लेख भी किया गया है ।
नंदिसूत्र में सूत्रकृतांग का परिचय देते हुए बताया गया है कि इसमें लोक, अलोक, लोकालोक, जीव प्रजीव, स्वसमय, तथा परसमय का निदर्शन और क्रियावादी, प्रक्रियावादी आदि ३६३ पाषण्ड मतों पर विचार किया गया है ।
दिगम्बर परम्परा के अंग पण्णत्ति, धवला, जयधवला, राजवार्तिक आदि मान्य ग्रन्थों में जो सूत्रकृतांग का परिचय दिया गया है वह काफी अंशों में श्वेताम्बर परम्परा द्वारा दिये गए इस अंग के परिचय से मिलता-जुलता है ।
दिगम्बर परम्परा के "प्रतिक्रमण ग्रंथत्रयी" नामक ग्रंथ में सूत्रकृतांग के २३ श्रध्ययन हैं, इस प्रकार का उल्लेख - " तेवीसाए सुद्दयड' ज्भारणेसु" - इस पद से किया है । इस पाठ की प्रभाचन्द्रकृत वृत्ति में इन तेवीस अध्ययनों के नाम
, सूयगडं अंगारण बितियं, तस्स य इमारिण नामाणि ।
सूतगड, सुत्तकडं, सुयगडं चेव गोण्णाई ॥ २ ॥
[ सूत्रकृतांग श्र० जवाहरलालजी म०द्वारा संपादित, प्रस्ता० पृ० ६ ] सुद्द या सुत्त और कृत का प्राकृत रूप यड या कड,
इस प्रकार [सम्पादक ]
२
सूत्र का प्राकृत रूप संस्कृत शब्द सूत्रकृत का प्राकृत स्वरूप सुद्दयड होता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org