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मा सुधर्मा क्षत्रिय राज थे?] केवलिकाल : मार्य सुपर्मा
_ "सौधर्मकुमार ने कुछ दिनों पश्चात् अपने पिता सुप्रतिष्ठ को भगवान् के गणधर के रूप में देखा तो उसे भी संसार से विरक्ति हो गई और वह भी प्रवजित हो गया। थोड़े समय के पश्चात् वह भी भगवान् का पांचवां गणधर बन गया। सुधर्मा नाम का वह पंचम गणधर मैं ही हूँ जो कि तुम्हारे भयदेव के भव में तुम्हारा भवदत्त नामक बड़ा भाई था।' तुम (छोटे भाई भवदेव के जीव) ब्रह्मोसर स्वर्ग से च्युत हो राजगृह नगर के श्रेष्ठी प्रहंदास की पत्नी जिनमती की कुषि से पुत्र रूप में उत्पन्न हुए । तुम्हारा नाम जम्बूकुमार रखा गया।"
कवि वीर और पं० राजमल्ल ने भगवान् महावीर के चतुर्य एवं पंचम गणघर को किस आधार पर क्षत्रिय वंशोद्भव बताया है इसे खोज निकालने का पर्याप्त प्रयास किये जाने के उपरान्त भी अभी तक किसी भी अन्य अन्य में इस प्रकार का उल्लेख उपलब्ध नहीं हो सका है।
. यह पहले बताया जा चुका है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परायें एक मत से भगवान महावीर के सभी गणधरों को ब्राह्मण कुलोद्भव
' (क) सौधर्मोऽपि तथा पश्चादीक्य तं गणनायकम् ।
जातसर्वागनिर्वेद: प्रवद्वाज महामुनिः ॥२६॥ क्रमात्सोऽभ्यभवत्तस्य पंचमो गणनायकः ।
सोऽहं सुधर्मनामा स्यां भवद्भ्रातृवरोधुना ॥३०॥ [ बही ] (ख) तं पुरु सुपइट्ठियनिवइ जिणचरणमइ परिपालइ समरे बलुखरु ।
"तहो सुहलक्खणभायणा, गुरदेवच्चरणकयमणा । सिंगारासयसिप्पिणी, पढ़मकलत्तं रुप्पिणी। भवयत्तु जेठु जो विहि मि चिरु सुरु सायरचंदु पुणो वि सुरु । सो गाउ पुत्तु जगजाणियहे नरना, रुप्पिणीराणियहे । सउहम्मनामुविजापवरु, नीसेससत्यविष्णाणधरु । एक्कहिं दिणे सुप्पइट्ठ निवड सकलतु सनंदणु सुद्धमई। गउ वंदणभत्तिए भवतरणु सिरिवीरजिणंदसमोसरणु । निसुणेवि परमेट्ठिहि दिव्यमुरिण पम्वज्ज लेवि हुउ परममुरिण । गणहरु पउत्यु तवतवियतणु सिरिवहुनिवेसियविमलमणु । पेक्षेनि लणेरु निवसिरि चइउ सउहम्मकुमारु वि पव्वइउ । गणहरु पंचमु नासियदुहहो प्रविणट्ठयाणु सासयसुहहो । सो हउँ रिसिसंघविराइयउ विहरंतुज्जाणि पराइयउ ।।
[जंबूसामिचरिउ (वीर विरचित) ८-३, ८.४] त्वं हि ततो दिवश्व्युत्वा, विद्युन्मालिचरोऽमरः । प्रहंदासगृहे मूनुजातः सर्वसुखाकरः ।।३३।।
[जम्बूस्वामिचरितम् (पं० राजमल्ल रचित), सर्ग ]
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