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जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग
[ आचारांग
उपरोक्त सभी तथ्यों पर गम्भीरतापूर्वक मनन के पश्चात् सिद्ध हो जाता है कि वस्तुतः आचारांग की ऐसी एक भी चूला नहीं थी और न है, जिसकी कि गणना श्राचारांग के दो श्रुतस्कन्धों, २५ अध्ययनों, ८५ उद्देशकों अथवा सम्पूर्ण आचारांग के १८००० पदों में सम्मिलित की जा सके । प्रारम्भ से प्रचारप्राभृत, अपर नाम आचारप्रकल्प, प्रकल्प अथवा निशीथ जो कि पूर्वज्ञान का अंश है, आचारांग की ऐसी चूला माना जाता रहा है जिसकी पदसंख्या आचारांग की पदसंख्या में सम्मिलित नहीं मानी जाती ।
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इस प्रकार आगमों में उपलब्ध आचारांग की चूलिका से सम्बन्धित उल्लेखों के पर्यवेक्षण से जो स्थिति स्पष्टतः प्रकट होती है वह इस प्रकार है:
१. समवायांग और नन्दीसूत्र में श्रागमों के परिचय के प्रकरण में जो आचारांग का परिचय दिया गया है उसमें आचारांग की एक भी चूलिका के अस्तित्व का उल्लेख नहीं किया गया है । उसमें यह स्पष्ट उल्लेख है कि दो श्रुतस्कन्ध, २५ अध्ययन, ८५ उद्देशन काल तथा ८५ समुद्देशनकाल वाले प्राचारांग की पदसंख्या १८००० है ।
२. पूरे नन्दी सूत्र में एक भी ऐसा उल्लेख नहीं है जिससे कि श्राचारांग की एक भी चूलिका का अस्तित्व प्रकट होता हो ।
३. समवायांग की समवाय संख्या १८, २५ और ६५ में आचारांग की चूलिका के अस्तित्व का उल्लेख अवश्य है । उसके अतिरिक्त चूलिका के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का उल्लेख नहीं किया गया है । समवाय संख्या २५ में शस्त्रपरिज्ञा से प्रारम्भ कर २५वें विमुक्ति नामक अध्ययन तक आचारांग के पच्चीसों अध्ययनों के नामों का उल्लेख करने के पश्चात् सन्देहास्पद स्थिति में जो उल्लेख किया गया है, वह इस प्रकार है - "निसीहं परणवीस इमं " - अर्थात् पच्चीसवां अध्ययन निशीथ ।
४. समवाय संख्या ५७ मे "प्रायारचूलावज्जारणं" अर्थात् "आचार चूला को छोड़कर " - इस उल्लेख के साथ श्राचारांग के २५ अध्ययनों में से प्रचारवूला स्वरूप एक अध्ययन को छोड़कर शेष २४ अध्ययनों के साथ सूत्रकृतांग के २३ और स्थानांग के १० अध्ययनों को मिलाकर प्रथम तीन अंगों के अध्ययनों की संख्या ५७ बताई गई है। इस समवाय में भी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि आचार-चूला आचारांग का कौनसा अध्ययन है । यह ध्यान देने योग्य बात है कि आचारांग के जिन २५ अध्ययनों के नाम समवाय संख्या २५ में उल्लिखित किये गये हैं वे पच्चीसों ही अध्ययन उन्हीं नामों के साथ आचारांग में आज भी विद्यमान हैं ।
५. संभव है समवाय सं० २५ और ५७ में परिलक्षित होने वाली चूलिकाविषयक संदेहास्पद स्थिति ही पदसंख्याविषयक, चूलिकाविषयक और आचारांग के 'द्वतीय तस्कन्धको आचारांग से भिन्न प्रचारांग की चूलिकाएं - प्राचाराय एवं
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