________________
E7
जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [अपर नाम नोहार्य
सुषर्मा का प्रपर नाम लोहार्य दिगम्बर परम्परा के कतिपय ग्रन्थों में प्रार्य सुधर्मा का अपर नाम लोहार्य भी उपलब्ध होता है । यद्यपि दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ तिलोयपणती प्रादि में प्रार्य सुधर्मा के इस अपर नाम का उल्लेख नहीं है और पट्टधरों के क्रम में श्वेताम्बर परम्परा की तरह सुधर्मा का नाम ही उपलब्ध होता है न कि लोहार्य का तथापि उपरिलिखित मान्यता के अनुसार पट्टधरों के क्रम में दिगम्बर परम्परा के अनेक ग्रन्थों और पट्टावलियों में सुधर्मा के स्थान पर लोहार्य का नाम उपलब्ध होता है।
श्वेताम्बर परम्परा की किसी भी पड़ावली अथवा ग्रन्थ में पद्रधरों के क्रम में कहीं भी लोहार्य का नाम दृष्टिगोचर नहीं होता। सर्वत्र सुधर्मा का नाम ही उपलब्ध होता है।
प्रावश्यक नियुक्ति के वृत्तिकार प्राचार्य मलयगिरी ने भगवान महावीर को कैवल्योपलब्धि के पश्चात् माहार लाकर देने वाले श्रमण का नाम लोहार्य लिखकर उनकी निम्नलिखित शब्दों में स्तुति की है :
धन्नो सो लोहज्जो, तिखमो पवरलोह सरिवन्नो।
जस्स जियो पत्तागो, इच्छइ पारिणहिं भोतुं जे ॥२॥
अर्थात् - वे क्षमासागर, लोहसार के समान कान्तिमान वर्ण बाले लोहार्य धन्य हैं जिनके भिक्षापात्र से स्वयं जिनेन्द्र भगवान् (महावीर) अपने पारिणपात्र द्वारा भोजन करना चाहते हैं।
__ इस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में भी “लौहार्य" - यह नाम तो उपलब्ध होता है पर यह प्रार्य सुधर्मा का ही अपर नाम था ऐसा कोई स्पष्ट उल्लेख न तो कहीं उपरोक्त "प्रावश्यक नियुक्ति मलयगिरी वृत्ति" में दृष्टिगोचर होता है और न श्वेताम्बर परम्परा के किसी अन्य ग्रन्थ में ही।
भगवान् महावीर को केवलज्ञान होने के पश्चात् उनके द्वारा तीर्थस्थापना के समय उनके तत्कालीन मुनियों में ग्यारह गणधरों का और उनमें भी इन्द्रभूति गौतम तथा प्रार्य सुधर्मा-इन दो गणधरों का विशिष्ट स्थान माना गया है । ऐसी दशा में केवलज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् भगवान महावीर को प्राहार लाकर देने वाले सुयोग्यतम साधु इन्द्रभूति गौतम एवं आर्य सुधर्मा से बढ़कर कोई अन्य नहीं (क)....गोदमसामिम्हि णिवुदे संते लोहजाइरिमो केवलणाणसंताणहरो जादो।
[छक्खंडागम वेदनाखंड, धवला, पृ० १३०] (ख)....एदम्हादो विउलगिरिमत्ययस्थवड्ढमारणदिवायरादो विरिणग्गमिय गोदम -
लोहज - जम्बुसामियादि-माइरियपरंपराए मागंतूण गुणहराइरियं पाविय गाहासरूवेण परिणमिय प्रज्जमंखुणागत्यीहितो जइवसहायरियमवरणमिय....
कसायपाहुर, जयधवला" अणुभागविहत्ती, पृ० ३८८] २ जादो सिद्धो वीरो तदिवसे गोदमो परमणाणी।
जादो तस्सिं सिद्धे सुधम्मसामी तदो जादो ॥१४७६।। तम्मि कदकम्मणासे जंबूसामि ति केवली जादो।.... तिलोयपणती, महा० ४ ]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org