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जैन धर्म का मालिक इतिहास-दितीय भाग [पट्टधर सुवर्ना ही क्यों ? उपदेश देते हैं वह वे अपने ज्ञान के प्राधार से देते हैं न कि अपने पूर्ववर्ती प्राचार्य के उपदेश-पादेश के प्राधार से।
प्रार्य सुधर्मा प्रभु के निर्वाण के समय १४ पूर्व के ज्ञाता थे, केवली नहीं। मतः वे यह कह सकते थे कि "भगवान् ने ऐसा फरमाया है", अथवा "भगवान ने जैसा फरमाया है वैसा ही मैं कह रहा हूँ।" किन्तु इन्द्रभूति गौतम भगवान् महावीर की निर्वाण-रात्रि के अवसान में ही सकल चराचर के पूर्ण ज्ञाता केवली बन चुके थे। ऐसी स्थिति में वे यह नहीं कह सकते थे कि "भगवान् ने ऐसा कहा है, वही मैं कहता हूँ"। केवली होने के कारण वे तो यही कहते कि- "मैं ऐसा देखता हूँ, मैं ऐसा कहता हूँ"।
ऐसी स्थिति में तीर्थकर भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित श्रुतपरम्परा को अविच्छिन्न रूप से यथावत् रखने की दृष्टि से इन्द्रभूति गौतम को भगवान् महावीर का उत्तराधिकारी न बनाया जाकर प्रार्य सुषर्मा को प्रथम पट्टधर नियुक्त किया गया। दूसरा कारण यह भी है कि केवली किसी के पट्टधर अथवा उत्तराधिकारी नहीं होते क्योंकि वे मात्मज्ञान के स्वयं पूर्ण अधिकारी होते हैं।
पट्ट-प्रदान किसके द्वारा ? मार्य सुधर्मा की तीर्थाधिनायक के रूप में भगवान् महावीर के प्रथम पट्टधर पद पर नियुक्ति चतुर्विध संघ ने को प्रथवा स्वयं श्रमण भगवान् महावीर ने इस प्रश्न पर प्रकाश डालने वाली एक गाथा 'गणहरसत्तरी" में उपलब्ध होती है, जो इस प्रकार है :
'तित्याहिवो सुहम्मो, लहुकम्मो गरिमगयण संकासो। वीरेण मज्झिमाए, संठविप्रो अग्गिवेसारगो ॥२॥
इस गाथा का सामान्य मर्म इस प्रकार होता है कि स्वयं भगवान् महावीर ने मध्यमपावा में प्रतिक्षीणकर्मा, केसरीसिंह तुल्य, अग्निवेश्यायन गोत्रीय सुधर्मा को तीर्थाधिप पद पर प्रतिष्ठित किया।
गाथा में प्रयुक्त "तित्याहिवो" और "मज्झिमाए" इन दो शब्दों पर समीचीन रूपेण विचार करने की आवश्यकता है ।
यह तो निर्विवाद ऐतिहासिक तथ्य है कि भगवान् महावीर ने मध्यमा (मध्यम पावा) में तीर्थ की स्थापना की और लगभग ३० वर्ष पश्चात् वहीं निर्वाण प्राप्त किया। ऐसी स्थिति में प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रभु महावीर द्वारा प्रार्य सुधर्मा की तीर्थाधिप पद पर नियुक्ति तीर्थ-स्थापना के समय की गई अथवा निर्वाण के समय ?
जैसा कि पहले बताया जा चुका है "प्रावश्यक नियुक्तिकार ने - "पुव्वं तित्वं गोयमसामिस्म दम्वेहि पज्जवेहि अणुजाणामित्ति" - इन शब्दों के साथ
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