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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [पूर्वभव में में पहुंच कर रात्रि के समय अपनी वासनापूर्ति के लिये ध्यानस्थ मुनि को ध्यान से विचलित करने के अनेक उपाय किये। मुनि को ध्यान से विचलित करने के सभी उपायों के निष्फल हो जाने पर उन तीनों स्त्रियों ने बड़ी निर्दयतापूर्वक मुनि पर दण्डों और पत्थरों के प्रहार किये।
मुनि को दी गई घोर पीड़ा के फलस्वरूप वे तीनों स्त्रियां अति भीषण कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो अन्ततोगत्वा पंचम नरक में उत्पन्न हुई। १७ सागर तक नरक के .असह्य दारुण दुःखों को भोग कर वे तीनों क्रमशः बिल्ली, शूकरी, कुतिया और मुर्गी के भव कर म्लेच्छ कूल में कन्याओं के रूप में उत्पन्न हई। सबः जात अवस्था में माता-पिता और शैशवावस्था में अभिभावकों तक के मर जाने के कारण वे तीनों कन्याएं दर-दर की ठोकरें खाती हुई बड़ा दुःखमय जीवन बिताने लगीं। उन तीनों का स्वरूप बड़ा ही अमनोज्ञ था। उनके शरीर से निरन्तर ऐसी कुत्सित दुर्गन्ध निकलती रहती थी कि कोई उन्हें पास तक नहीं फटकने देता था। कुला' होने के साथ-साथ उनमें से एक कानी, दूसरी लंगड़ी पोर तीसरी कौवे की तरह नितान्त काली-कलूटी थी । इस प्रकार असहायावस्था में भूखी-प्यासी इधर-उधर भटकती हुई वे तीनों कन्याएं एक नगर के बाहर विराजमान ग्रंगभूषण नामक मुनि के पास पहुंची और वंदन-नमस्कार के पश्चात् उनका उपदेश श्रवण करने लगीं।
उपदेश-श्रवण के पश्चात् अवन्ती के महाराज महीचन्द्र ने मुनि से प्रश्न किया- "भगवन् ! इन अत्यन्त घृणित शरीर वाली नितान्त कुरूप कन्याओं के प्रति मेरे मानस में प्रात्मीय भाव से स्नेह किस कारण जागृत हो रहा है ?"
उत्तर में अंगभूषण मुनि ने कहा- "राजन् ! पूर्वभव में यह कानी कन्या तुम्हारी विशालाक्षी नाम की रानी और ये दोनों उसकी दासियां थीं। मुनि को भीषण यातना देने के फलस्वरूप ये तीनों दुर्गतियों में भटकती हुई शूद्रकन्याओं के रूप में उत्पन्न हुई हैं। पूर्वभव के सम्बन्ध के कारण तुम्हारे मन में इनके प्रति स्नेह जागृत हो उठा है।"
___ पश्चात्ताप के प्रांतू बहाती हुई कन्याओं की प्रार्थना पर मुनि ने उन्हें "लब्धिविधान" नामक व्रत करने का उपदेश दिया ! मुनिराज के उपदेश और महाराज महीचन्द्र के सहयोग से उन तीनों ने सम्यक्त व ग्रहण किया और सन्धिविधान व्रत एवं तप करती हुई वे तीनों कन्याएं धर्माचरण में निरत रहतीं। अन्त में वे तीनों कन्याएं अपनी स्त्रीलिंग की कर्मप्रकृतियों को विनष्ट कर समाधिपूर्वक प्रायु पूर्ण कर पंचम देवलोक में महद्धिक देवों के रूप में उत्पन्न हुई।
पंचम स्वर्ग के अनुपम सुखों का १० सागर की सुदीर्घ अवधि तक उपभोग करने के मनन्तर विशालाक्षी का जीव भरत क्षेत्रान्तर्गत मगध देश के ब्राह्मण नवर के निवासी शांडिल्य नामक वेदपाठी विद्वान् ब्राह्मण की ज्येष्ठ भार्या स्पंडिला के गर्भ में उत्पन्न हुमा। गर्भाधान की रात्रि में स्थंडिला ने एक महा
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