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प्राचीन दिगम्बर मान्यता] केवलिकाल : इन्द्रभूति गौतम इन्द्रभूति गौतम नहीं, अपितु सुधर्मा स्वामी हुए । उपरोक्त श्लोक में छन्द की दृष्टि से गौतमः इन्द्रभूति का नामोल्लेख करने में ग्रन्थकार को कठिनाई आई होगी इसलिये उसके द्वारा सुधर्मा का नाम रखा गया- इस प्रकार की लचर दलील दे कर इस श्लोक के अर्थ को यदि तोड़-मरोड़ कर अन्य रूप से रखने का प्रयास किया जाय तो निश्चित रूप से मूलग्रन्थकार और संस्कृत में उसका अनुवाद करने वालेइन दोनों ही ग्रन्थकारों के प्रति अन्याय होगा।
मूल “लोकविभाग" की रचना मुनि सर्वनन्दि ने पाण्ड्य राष्ट्र के पाटलिक ग्राम में की और शक संवत् ३८०, तदनुसार विक्रम सं० ५५५ में इसे समाप्त किया' इस प्रकार का उल्लेख संस्कृत “लोकविभाग" के रचयिता ने किया है.।
__इस प्रकार के प्राचीन ग्रन्थ में भगवान् महावीर के प्रथम पट्टधर के सम्बन्ध में परोक्ष रूप से जो यह उल्लेख किया गया है यह इतिहास के विद्वानों के लिये विचारणीय है।
' विश्वे स्थिते रविसुते वृषभे च जीवे, राजोत्तरेषु सितपक्षमुपेत्य चन्द्रे ।
प्रामे च पाटलिकनामनि पाण्ड्यराष्ट्र, शास्त्रं पुरा लिखितवान्मुनि सर्वनन्दिः ।।२।। संवत्सरे तु द्वाविशे, कांचीसिंहवर्मणः । मशीत्यने शकान्दानां, सिद्धमेतच्छतत्रये ॥३॥
[लोकविभाग]
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