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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [दीमा से पूर्व का जीवन स्वर्गीय मुनि मणिलालजी द्वारा प्रार्य सुधर्मा के जीवन-परिचय के सम्बन्ध में दिया गया वह विवरण यहां यथावत् दिया जा रहा है :
___ "प्रभु वीर पट्टावली भगवान् महावीर नी पहेली पाट पर श्री सुधर्म स्वामी विराज्या। तेमनो जन्म "कोल्लाग सन्निवेश" नामक स्थल मां 'धम्मिल' नामना विप्र ने त्यां थयो हतो। बाल्यावस्था थीज धर्म प्रत्ये तेमनी प्रयाग रुचि होवा थी तेमन नाम "सुधर्म" तरीके जनता में प्रसिद्ध थयं । योवन वय प्राप्त थई त्यारे पोतानी अनिच्छा छतां तेमने माता-पिताए "वात्स्य गोत्र" मां उत्पन्न थयेली एवी एक कन्या साथे तेमन पाणिग्रहण कराव्यं । उदासीन भावे संसार मां रहेतां तेमने एक पुत्री थई हती। सतत ज्ञानाभ्यास मां रहेतां तेत्रो चार वेद, श्रुति, स्मृति वगेरे अढ़ार पुराण मां सम्पूर्ण पारंगत थया। दिन प्रतिदिन संसार पर तेमनी अरुचि बघती गई, प्रने समय परिपक्व थतां सर्व नी अनुमति लई तेमणे सन्यासपणुं अंगीकार कयु अने छेवटे शंकराचार्य नी पदवी प्राप्त करी, पोताना शिष्य परिवार साये फरता-फरता ज्यारे तेसो "जंभिका" नामनी नगरी मां प्राव्या, त्यारे तेमने प्रभु महावीर नो समागम थयो । ज्यां तेमने शंकामोन समाधान ययु 'प्रने प्रभु वीर पासे तेमणे भागवती दीक्षा अंगीकार करी।"
मार्य सुधर्मा के सम्बन्ध में उपर्युक्त विवरण देते हुए स्व० मुनि मणिलालजी ने जो नवीन तथ्य रखने का प्रयास किया है, उन तथ्यों को रखते समय उनके समक्ष क्या प्राधार था इसे जानने के लिये हमारी भोर से पूरा प्रयास किया गया, पर अभी तक वृद्ध पट्टावली के उपरिलिखित प्रालेख के अतिरिक्त और कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं हरा है, जिसके माधार पर प्रार्य सुधर्मा के जीवन के सम्बन्ध में जो नवीन बातें मुनि श्री मणिलालजी ने रखी हैं उन्हें पूर्ण प्रामाणिक माना जा सके। - इस सम्बन्ध में विद्वानों द्वारा अप्रकाशित पुस्तकों की खोज की जाय तो जैन और वैदिक दोनों ही परम्परामों के इतिहास में कुछ नवीन उपलब्धियां हो सकती हैं। प्राशा है इस सम्बन्ध में इतिहास के विद्वान तथ्य को खोजने का प्रयास करेंगे।
प्रार्य सुधर्मा के गृहस्थ-जीवन के सम्बन्ध में जो प्रामाणिक विवर उपलब्ध होता है, उससे यह तो विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि विद्वत्ता साथ-साथ वे प्रार्थिक दृष्टि से भी पर्याप्तरूपेण सम्पन्न थे। यज्ञानुष्ठानादि से उन्हें विपुल अर्थ की उपलब्धि होती रही होगी तभी उनकी सेवा में ५०० छात्र सदा विद्यमान रहते थे। 'श्री जैन धर्म नो प्राचीन संक्षिप्त इतिहास अने प्रभु वीर पट्टावलि, (पंच भाई नी पोळ,
महमदाबाद)।
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