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जन्म स्थानादि]
केवलिकाल : प्रायं सुधर्मा फल भी.तदनुकूल भोगना पड़ता है। जन्म-नक्षत्र एवं जन्मराशियां उन पुण्य तथा पापबन्धों के भावी उदयकाल की पूर्वसूचना के माध्यम माने जा सकते हैं। भगवान् महावीर की जन्मराशि और जन्म-नक्षय से जिस प्रकार यह पूर्वाभास होता है कि प्रभु महावीर का शासन २१ हजार वर्ष तक चलता रहेगा, ठीक उसी प्रकार आर्य सुधर्मा के जन्म-काल में उसी राशि और उसी नक्षत्र का होना भी यह पूर्व सूचना देता है कि भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर द्वारा प्रथित मागम परम्परा, उनके द्वारा की हुई संघ-व्यवस्था और उनकी शिष्य-परम्परा भी २१ हजार वर्ष तक बिना किसी व्यवधान के निरन्तर चलती रहेगी।
प्राचीन काल में भारतवर्ष का वह भू-भाग - जिसको पूर्व में कोशिकी नदी, पश्चिम में गंडकी नदी, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में गंगानदी घेरे हुए थी-विदेह के नाम से विख्यात था। जिस कोल्लाग सग्निवेश में प्रार्य सुधर्मा का जन्म हुआ वह लिच्छवी गणराज्य की राजधानी वैशाली के आस-पास ही बसा हुअा था। पुरातत्त्ववेत्तानों द्वारा अनुमान लगाया जाता है कि प्राजकल जो कोल्लुमा ग्राम प्रवस्थित है, वहीं उस समय संभवतः कोल्लाग ग्राम बसा हुमा होगा।'
माता-पिता आर्य सुधर्मा के पिता का नाम घम्मिल्ल और माता का नाम भद्दिला था। अग्निवैश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण प्रार्य धम्मिल्ल वेद-वेदांग के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् थे। अनुमान से यह कहना भी अधिक संगत प्रतीत होता है कि अपने समय में गुरुकुल प्रणाली के प्राचार्यों में उनकी गणना की जाती हो। कोल्लाग मनिवेश में एक ही समय में आर्य व्यक्त और प्रार्य सुधर्मा जैसे दो विद्वानों के सान्निध्य में पांच-पांच सौ छात्रों का अहर्निश सेवा में रहते हुए विद्याध्ययन करना इस बात का द्योतक है कि उन दिनों वैशाली और उसके आस-पास का क्षेत्र शिक्षा का बहुत बड़ा केन्द्र बना हुआ था एवं आर्य व्यक्त तथा प्रार्य सुधर्मा को अपने-अपने पिता से गुरुकूल पद्धति के प्राचार्य-पद की प्राप्ति हुई थी। वैशाली और नालन्दा जैसे विशाल एवं समुत्रत शिक्षा केन्द्रों के कारण ही अतीत में आर्य-धरा की गौरवगाथाओं के गरिमापूर्ण स्वर निम्नलिखित रूप में विश्व के विस्तीर्ण गगन में गंज रहे थे एवं प्राज भी उन स्वरों की गूंज मिटी नहीं है :
एतद्देशप्रसूतस्य, सकाशादग्रजन्मनः । स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्, पृथिव्यां सर्वमानवाः ।।
शिक्षण विद्यानुरागी समाज और विद्वद्वंश-परम्परा के संस्कारों में पले-पुसे सुधर्मा ने अपने विद्यार्थी जीवन में ऋक्, साम, यजुः और अथर्व इन चार वेदों, शिक्षा, Suburb Kollaga (HEIT Afragt)--Pet haps Modern Kollua. (The Journal of The Royal Asiatic Society, 1902 P. 283 २ मनुस्मृति, अ० २, श्लो० २०
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